बड़ी खबर : उत्तराखंड भू-कानून विधेयक को राज्यपाल की मंजूरी, जानें क्या बदलेगा

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का नया ऐलान

देहरादून : लंबे समय से बहुप्रतीक्षित उत्तराखंड भू-कानून संशोधन विधेयक को आखिरकार राज्यपाल की मंजूरी मिल गई है। उत्तराखंड विधानसभा द्वारा 21 फरवरी 2025 को पारित उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950) (संशोधन) विधेयक, 2025 अब राज्य में लागू हो गया है। इसके साथ ही राज्य में भूमि खरीद-बिक्री और स्वामित्व से जुड़े नियमों में बड़े बदलाव लागू हो गए हैं। इस विधेयक के तहत अब राज्य के सीमांत, पर्वतीय और संवेदनशील क्षेत्रों में बाहरी लोगों द्वारा जमीन खरीदने पर सख्त नियम लागू होंगे। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इसे जनभावनाओं के सम्मान और राज्य के मूल स्वरूप को संरक्षित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम बताया है।

पुरानी मांग पूरी

उत्तराखंड भू-कानून की मांग पिछले कई वर्षों से उठ रही थी। 2002 में एन.डी. तिवारी सरकार ने बाहरी लोगों के लिए 500 वर्ग मीटर तक जमीन खरीद की सीमा तय की थी, जिसे 2007 में घटाकर 250 वर्ग मीटर किया गया। हालांकि, 2018 में त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार द्वारा इस सीमा को हटाने और जिलाधिकारी स्तर से अनुमति देने का प्रावधान करने से भू-माफियाओं को बढ़ावा मिला।

इसके खिलाफ राज्य में सामाजिक संगठनों और युवाओं ने आंदोलन शुरू किया। 2022 में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में एक समिति गठित की, जिसने सख्त भू-कानून के लिए 23 सिफारिशें प्रस्तुत कीं। इन सिफारिशों के आधार पर धामी सरकार ने जनभावनाओं का सम्मान करते हुए यह विधेयक तैयार किया।

फरवरी में विधानसभा में पारित हुआ

21 फरवरी 2025 को उत्तराखंड विधानसभा के बजट सत्र में यह विधेयक ध्वनिमत से पारित हुआ। विपक्ष द्वारा इसे प्रवर समिति को सौंपने की मांग की गई, लेकिन मुख्यमंत्री धामी ने स्पष्ट किया कि यह कानून जनता की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करने के लिए लाया गया है। विधानसभा में चर्चा के दौरान धामी ने कहा कि यह कानून न केवल भू-माफियाओं पर लगाम लगाएगा, बल्कि राज्य की सांस्कृतिक और पर्यावरणीय विरासत को भी सुरक्षित रखेगा।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस कानून को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने 2022 में समिति गठन से लेकर विधेयक को विधानसभा में पेश करने और राज्यपाल की मंजूरी तक इस प्रक्रिया को गति दी। धामी ने बार-बार जोर दिया कि उनकी सरकार जनता के हितों और उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।

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राज्यपाल की मंजूरी

1 मई 2025 को महामहिम राज्यपाल ने इस विधेयक को अपनी मंजूरी प्रदान की, जिसके साथ ही यह कानून औपचारिक रूप से लागू हो गया। इस मंजूरी को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उत्तराखंड सरकार ने एक ऐतिहासिक कदम बताया। मुख्यमंत्री धामी ने सोशल मीडिया पर कहा, “देवभूमि में भूमि प्रबंधन और भू-व्यवस्था के लिए यह विधेयक प्रदेशवासियों की अपेक्षाओं को पूरा करेगा और उत्तराखंड के मूल स्वरूप को बनाए रखेगा।”

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क्या है नया भू-कानून विधेयक?

नया भू-कानून उत्तराखंड में भूमि प्रबंधन और सुधार की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है। इसके प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं:

  1. कृषि भूमि पर प्रतिबंध: हरिद्वार और उधम सिंह नगर को छोड़कर, शेष 11 पर्वतीय जिलों में बाहरी व्यक्तियों द्वारा कृषि और बागवानी के लिए जमीन खरीदने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया है।
  2. आवासीय भूमि की सीमा: बाहरी व्यक्ति जीवन में केवल एक बार 250 वर्ग मीटर तक आवासीय भूमि खरीद सकते हैं, वह भी शपथ पत्र देकर, जिसमें यह पुष्टि करनी होगी कि न तो उन्होंने और न ही उनके परिवार ने इससे अधिक जमीन राज्य में खरीदी है।
  3. निवेश के लिए अनुमति: निवेश या औद्योगिक उद्देश्यों के लिए भूमि खरीद के लिए शासन स्तर से अनुमति अनिवार्य होगी। जिलाधिकारी स्तर की अनुमति प्रणाली को समाप्त कर दिया गया है।
  4. भू-उपयोग का सख्त नियंत्रण: खरीदी गई जमीन का उपयोग केवल निर्धारित उद्देश्य के लिए ही किया जा सकेगा। यदि जमीन का दुरुपयोग होता है या शपथ पत्र झूठा पाया जाता है, तो वह जमीन सरकार में निहित कर दी जाएगी।
  5. पारदर्शी मॉनिटरिंग: सभी जिलाधिकारियों को भूमि खरीद से संबंधित नियमित रिपोर्ट राजस्व परिषद और शासन को भेजनी होगी। भूमि खरीद प्रक्रिया की निगरानी एक ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से की जाएगी।
  6. नगर निकाय क्षेत्रों में नियम: नगर निकाय सीमा के भीतर भूमि का उपयोग केवल निर्धारित भू-उपयोग के अनुसार होगा। नियमों के उल्लंघन पर सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

यह फायदे होंगे

इस संशोधित भू-कानून में राज्य के बाहर के व्यक्तियों द्वारा कृषि भूमि खरीदने पर प्रतिबंध जैसी कई नई शर्तें जोड़ी गई हैं। पर्वतीय और सीमावर्ती जिलों में जमीन की अंधाधुंध खरीद-बिक्री पर रोक लगाने के उद्देश्य से यह प्रावधान लाया गया है ताकि राज्य की भौगोलिक पहचान, पर्यावरणीय संतुलन और स्थानीय निवासियों के हित सुरक्षित रह सकें।

  • गैर-कृषि भूमि की खरीद पर नियमन: अब राज्य के बाहर के लोग या संस्थाएं उत्तराखंड में सिर्फ सीमित क्षेत्रफल तक ही भूमि खरीद सकेंगे। इससे अव्यवस्थित शहरीकरण और अतिक्रमण को रोका जा सकेगा।

  • राज्य के मूल निवासियों को संरक्षण: इस कानून के तहत राज्य के स्थायी निवासियों के अधिकारों की रक्षा की गई है। पर्वतीय क्षेत्रों में भूमि खरीदने के लिए स्थानीय प्रशासन से पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया है। स्थानीय लोगों को अपनी पैतृक भूमि पर अधिक अधिकार मिलेगा, जिससे वे भूमिहीन होने से बचेंगे।

  • कॉरपोरेट कंपनियों पर नजर: अब कंपनियां भी बिना राज्य सरकार की मंजूरी के भूमि नहीं खरीद पाएंगी। इससे बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहण और शोषण पर अंकुश लगेगा। निवेशकों को उद्योग और विकास के लिए जमीन उपलब्ध कराने के प्रावधान सुनिश्चित करेंगे कि राज्य का आर्थिक विकास प्रभावित न हो।

  • भू-माफियाओं पर लगाम: पिछले कुछ वर्षों में भू-माफियाओं द्वारा नियमों का उल्लंघन कर जमीन खरीदने के 599 मामले सामने आए थे, जिनमें से 572 मामले न्यायालय में हैं। अब सख्त नियमों से ऐसी गतिविधियों पर रोक लगेगी।

भविष्य के लिए क्या होंगे प्रभाव?

  1. स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के अवसर: अब बाहरी निवेशकों के अनियंत्रित प्रवेश पर रोक लगने से स्थानीय स्तर पर कृषि, पर्यटन और छोटे उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा।

  2. पर्यावरण संरक्षण: बिना योजना के भूमि उपयोग से जुड़े खतरों से बचा जा सकेगा, जिससे पहाड़ों की पारिस्थितिकी संतुलित रहेगी।

  3. अवैध कब्जे और अतिक्रमण पर रोक: प्रशासनिक सख्ती के चलते अब सरकारी और वन भूमि पर अवैध कब्जे पर भी प्रभावी नियंत्रण संभव होगा।

  4. सांस्कृतिक और पर्यावरणीय संरक्षण: यह कानून उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत और पर्यावरण को अंधाधुंध भूमि खरीद से होने वाले नुकसान से बचाएगा।

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प्रावधानों से असंतोष और भविष्य की चुनौतियां

हालांकि सशक्त भू-कानून को व्यापक समर्थन मिला है, लेकिन कुछ वर्गों में इसके प्रावधानों को लेकर असंतोष भी देखा जा रहा है। आंदोलनकारियों का कहना है कि यह लचर कानून है और इसमें कई कमियां जानबूझकर छोड़ी गई हैं। इसके अलावा पर्यटन और रियल एस्टेट क्षेत्र से जुड़े कारोबारी मानते हैं कि बाहरी लोगों पर सख्त प्रतिबंध से राज्य में निवेश और पर्यटन विकास प्रभावित हो सकता है। इसके अलावा, आवासीय भूमि की 250 वर्ग मीटर की सीमा को कुछ लोग बहुत कम मानते हैं, जिससे छोटे पैमाने पर रिटायरमेंट होम्स या अवकाश गृह बनाने की उनकी योजनाएं बाधित हो सकती हैं। भविष्य में इस कानून के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए सरकार को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जैसे नियमों के उल्लंघन की निगरानी, ऑनलाइन पोर्टल की तकनीकी दक्षता, और भू-माफियाओं द्वारा नए रास्ते तलाशने की कोशिशें। इसके लिए प्रशासन को सख्त निगरानी तंत्र और नियमित समीक्षा की आवश्यकता होगी ताकि कानून का उद्देश्य पूरी तरह से प्राप्त हो सके।

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SD Pandey

शंकर दत्त पांडेय वरिष्ठ पत्रकार हैं और पिछले चार दशक से मीडिया की दुनिया में सक्रिय हैं। Uncut Times के साथ वरिष्ठ सहयोगी के रूप से जुड़े हैं। उत्तराखंड की पत्रकारिता में जीवन का बड़ा हिस्सा बिताया है। कुमाऊं के इतिहास की अच्छी जानकारी रखते हैं। दर्जनों पत्र-पत्रिकाओं में समसामयिक और शोधपरक लेख प्रकाशित। लिखने-पढ़ने और घूमने में रुचि। इनसे SDPandey@uncuttimes.com पर संपर्क कर सकते हैं।


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