पिंडर नदी से जुड़ेगी कोसी-रामगंगा: उत्तराखंड की मौसमी नदियों को मिलेगा नया जीवन

पिंडर नदी से जुड़ेगी कोसी-रामगंगा उत्तराखंड की मौसमी नदियों को मिलेगा नया जीवन

अल्मोड़ा, उत्तराखंड। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में मौसमी नदियों के अस्तित्व पर मंडराते संकट के बीच पिंडर नदी से उन्हें जोड़ने की योजना एक नई उम्मीद लेकर आई है। इस परियोजना का उद्देश्य कोसी, रामगंगा, गगास और गरुड़ गंगा जैसी नदियों को पुनर्जीवित करना है, जो जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक स्रोतों के सूखने के कारण संकट में हैं।

मौसमी नदियों पर संकट

पिछले दो दशकों से जलवायु परिवर्तन के कारण उत्तराखंड की छोटी नदियों में पानी की मात्रा तेजी से घट रही है। गर्मियों में कोसी, रामगंगा, गगास, और गरुड़ गंगा जैसी नदियों में पानी नाममात्र रह जाता है, जिससे पेयजल योजनाएं और सिंचाई नहरें प्रभावित हो रही हैं। अल्मोड़ा और बागेश्वर के छोटे किसानों की आजीविका इन नदियों पर निर्भर है। जल संकट के कारण कई प्राकृतिक स्रोत सूख चुके हैं, और जैव विविधता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

क्या आप जानते हैं? कोसी नदी अल्मोड़ा से जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क तक मानव और वन्य जीवों के लिए जीवनदायिनी है, लेकिन पानी की कमी ने इसके पारिस्थितिकी तंत्र को खतरे में डाल दिया है।

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पिंडर नदी परियोजना 

ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के कारण उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में नौले, धारे, और छोटी-छोटी मौसमी नदियां अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं। अल्मोड़ा की कोसी, रामगंगा, गगास और बागेश्वर की गरुड़ गंगा जैसी नदियां, जो बड़े भूभाग में पेयजल और सिंचाई का आधार हैं, गर्मियों में सूखने की कगार पर हैं। इन नदियों को बचाने के लिए लंबे समय से हिमालय की पिंडर नदी से जोड़ने की मांग उठ रही थी। अब, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की घोषणा ने इस मांग को नई उम्मीद दी है। पिंडर नदी परियोजना के साकार होने पर न केवल नदियां पुनर्जनन करेंगी, बल्कि कृषि, पेयजल, और जैव विविधता को भी नया जीवन मिलेगा।

पिंडर नदी परियोजना

पिंडर नदी, जो बागेश्वर जिले के पिंडारी ग्लेशियर से निकलती है, अलकनंदा की प्रमुख उपनदी है। 105 किलोमीटर लंबी इस बर्फानी नदी को कर्ण गंगा के नाम से भी जाना जाता है। उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन के समय से ही मौसमी नदियों को पिंडर नदी से जोड़ने की मांग रही है। 1990 के दशक में द्वाराहाट के पूर्व विधायक विपिन त्रिपाठी ने इस मांग को जोर-शोर से उठाया था। केंद्र सरकार की नदी जोड़ो परियोजना (2002) के दौरान भी इस पर चर्चा हुई, लेकिन अब तक कोई ठोस प्रगति नहीं हुई थी।

अक्टूबर 2024 में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और अल्मोड़ा के सांसद अजय टम्टा ने नीति आयोग को इस परियोजना का प्रस्ताव सौंपा। 4 अप्रैल 2025 को चौखुटिया की एक सभा में धामी ने सार्वजनिक रूप से इस परियोजना को जल्द साकार करने का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि नीति आयोग का सकारात्मक रुख इस परियोजना को मंजूरी दिलाने में मदद करेगा।

पिंडर नदी का महत्व

पिंडर नदी का उद्गम पिंडारी ग्लेशियर से होता है, जो बागेश्वर जिले में स्थित है। यह नदी कर्ण प्रयाग में अलकनंदा नदी में मिल जाती है। पिंडर नदी की जल उपलब्धता मौसमी नदियों को पुनर्जनन देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इस परियोजना के तहत पिंडर नदी के पानी को कोसी, रामगंगा, गगास, और गरुड़ गंगा तक पहुंचाने की योजना है।

परियोजना के लाभ

पिंडर नदी परियोजना के साकार होने से उत्तराखंड के कई क्षेत्रों को लाभ होगा। कुछ प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं:

  • पेयजल समाधान: अल्मोड़ा, चौखुटिया, द्वाराहाट, और गरुड़ जैसे क्षेत्रों में पेयजल संकट का स्थायी समाधान होगा।
  • सिंचाई सुविधा: गेवाड़ घाटी, गगास कोसी, सोमेश्वर, और गरुड़ घाटी जैसे क्षेत्रों में छोटे किसानों को सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी मिलेगा।
  • जैव विविधता संरक्षण: नदियों में पानी की मात्रा बढ़ने से वन्य जीवन और पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षण मिलेगा। कोसी नदी का पारिस्थितिकी तंत्र, जो जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क तक फैला है, पुनर्जनन करेगा।
  • पर्यटन को बढ़ावा: नदियों के पुनर्जनन से पर्यटन स्थलों की सुंदरता बढ़ेगी, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा।

खास बात: इस परियोजना से अल्मोड़ा और बागेश्वर के हजारों छोटे किसानों की आजीविका सुरक्षित होगी, और जैव विविधता को बढ़ावा मिलेगा।

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परियोजना की प्रगति और चुनौतियां

हालांकि नीति आयोग ने इस परियोजना पर सकारात्मक रुख दिखाया है, लेकिन इसे धरातल पर लाने के लिए कई चुनौतियां हैं। इनमें शामिल हैं:

  • वित्तीय प्रबंधन: परियोजना के लिए बड़े पैमाने पर धनराशि की आवश्यकता होगी। केंद्र और राज्य सरकार को मिलकर बजट सुनिश्चित करना होगा।
  • पर्यावरणीय प्रभाव: नदी जोड़ने की परियोजना का पर्यावरण पर प्रभाव न्यूनतम रखने के लिए विशेषज्ञों की सलाह जरूरी होगी।
  • स्थानीय सहमति: परियोजना के लिए स्थानीय समुदायों और हितधारकों का समर्थन जरूरी है।

मुख्यमंत्री धामी ने आश्वासन दिया है कि परियोजना को समयबद्ध तरीके से पूरा करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए जाएंगे।

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नागरिकों की राय

पिंडर नदी परियोजना उत्तराखंड के लिए एक वरदान साबित हो सकती है। यह न केवल मौसमी नदियों को पुनर्जनन देगी, बल्कि पेयजल, सिंचाई, और जैव विविधता के संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। स्थानीय निवासियों में इस परियोजना को लेकर उत्साह है। अल्मोड़ा के किसान गोविंद सिंह कहते हैं, “पिंडर नदी का पानी अगर कोसी तक पहुंचा, तो हमारी खेती फिर से जीवित हो जाएगी।” वहीं, कुछ पर्यावरणविद् इस परियोजना के पर्यावरणीय प्रभावों को लेकर सतर्कता बरतने की सलाह दे रहे हैं।

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SD Pandey

शंकर दत्त पांडेय वरिष्ठ पत्रकार हैं और पिछले चार दशक से मीडिया की दुनिया में सक्रिय हैं। Uncut Times के साथ वरिष्ठ सहयोगी के रूप से जुड़े हैं। उत्तराखंड की पत्रकारिता में जीवन का बड़ा हिस्सा बिताया है। कुमाऊं के इतिहास की अच्छी जानकारी रखते हैं। दर्जनों पत्र-पत्रिकाओं में समसामयिक और शोधपरक लेख प्रकाशित। लिखने-पढ़ने और घूमने में रुचि। इनसे SDPandey@uncuttimes.com पर संपर्क कर सकते हैं।


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