Uttarakhand News : उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के मियांवाला इलाके में नाम बदलने को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। अब यह मामला और गरमा गया है क्योंकि मियांवाला के नाम रामजीवाला करने की फाइल मुख्यमंत्री के पास भेज दी गई है, और सभी की नजरें उनके अंतिम फैसले पर टिकी हैं।
नाम परिवर्तन की सूची में मियांवाला सबसे विवादास्पद
17 प्रस्तावित नाम परिवर्तनों में मियांवाला सबसे विवादास्पद मुद्दा बन गया है। सरकार के लिए यह एक नाजुक स्थिति है, क्योंकि एक तरफ उसे अपनी सांस्कृतिक नीति को आगे बढ़ाना है, वहीं दूसरी तरफ स्थानीय लोगों की भावनाओं का भी सम्मान करना जरूरी है। शासन ने मियांवाला की फाइल मुख्यमंत्री कार्यालय को भेज दी है, और अब अंतिम निर्णय मुख्यमंत्री धामी को लेना है।
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हल्द्वानी की दो सड़कों के नाम बदले
मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद, हल्द्वानी की दो सड़कों के नाम औपचारिक रूप से बदल दिए गए हैं। अपर सचिव शहरी विकास गौरव कुमार द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि हल्द्वानी के मेयर के प्रस्ताव और लोक निर्माण विभाग की अनापत्ति के आधार पर ये परिवर्तन किए गए हैं:
- नवाबी रोड को अब “अटल मार्ग” कहा जाएगा।
- पनचक्की से आईटीआई रोड का नाम बदलकर “गुरु गोलवलकर मार्ग” रखा गया है।
इसके अलावा, ऊधमसिंह नगर की नगर पंचायत सुल्तानपुर पट्टी का नाम “कौशल्यापुरी” किए जाने का प्रस्ताव भी तैयार है, जिस पर आदेश जल्द ही जारी हो सकता है।
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उत्तराखंड सरकार ने हाल ही में देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल और उधमसिंह नगर जिलों में 17 स्थानों के नाम बदलने का फैसला किया था। इन्हीं में से एक था मियांवाला, जिसे अब “रामजीवाला” कहा जाने का प्रस्ताव है। सरकार का तर्क है कि ये नाम परिवर्तन जनभावनाओं और भारतीय संस्कृति को ध्यान में रखते हुए किए जा रहे हैं।
लेकिन मियांवाला के स्थानीय निवासियों का कहना है कि यह बदलाव उनकी पहचान और ऐतिहासिक धरोहर पर सीधा प्रहार है। उनका दावा है कि मियांवाला नाम का संबंध “मियां” उपाधि से है, जो राजपूत समुदाय को टिहरी गढ़वाल रियासत द्वारा दी गई थी। यह नाम किसी भी धार्मिक संदर्भ से नहीं, बल्कि सम्मान की भावना से जुड़ा हुआ है।
इतिहासकारों के अनुसार, टिहरी रियासत के राजा प्रदीप शाह ने 18वीं शताब्दी में गुलेरिया राजपूतों को यह जागीर दी थी, जिसके बाद इस क्षेत्र को मियांवाला नाम मिला। स्थानीय लोगों का मानना है कि अगर इस नाम को बदला गया, तो यह उनके इतिहास और सांस्कृतिक विरासत के साथ अन्याय होगा।
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विरोध और मुख्यमंत्री से मुलाकात
इस विवाद के बीच, मियांवाला के निवासियों ने कई बैठकें कीं और जिलाधिकारी के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपा। इसके बाद एक प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से सीधे मुलाकात की और मियांवाला के ऐतिहासिक महत्व को समझाया। मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया कि वे इस मामले पर विचार करेंगे और नाम परिवर्तन के निर्णय पर पुनर्विचार किया जाएगा।
हालांकि, अभी तक इस संबंध में कोई आधिकारिक शासनादेश जारी नहीं हुआ है। स्थानीय लोगों ने यह भी स्पष्ट किया है कि वे मुख्यमंत्री के आश्वासन पर एक सप्ताह का इंतजार करेंगे। अगर कोई फैसला नहीं आया, तो फिर से विरोध प्रदर्शन किया जाएगा।
क्या कहते हैं इतिहासकार?
इतिहासकारों का मानना है कि मियांवाला का नाम बदलना एक ऐतिहासिक भूल होगी। यह नाम टिहरी रियासत और गुलेर रियासत के बीच सांस्कृतिक संबंधों का प्रतीक है। टिहरी नरेश का ससुराल गुलेर रियासत में था और वहां से आए राजपूतों को “मियां” की उपाधि दी गई थी। यह नाम सम्मान और पहचान का हिस्सा है, जिसे मिटाना स्थानीय संस्कृति के लिए नुकसानदायक होगा।
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अन्य नाम परिवर्तनों पर भी निगाह
- रुड़की के औरंगजेब नगर का नाम बदलकर “शिवाजी नगर” रखा गया है।
- खानपुर गांव को अब “श्रीकृष्ण नगर” के नाम से जाना जाएगा।
इन नाम परिवर्तनों को सत्तापक्ष ने सांस्कृतिक पुनर्जागरण बताया है, जबकि विपक्ष इसे जनता का ध्यान भटकाने की रणनीति कह रहा है।
आगे क्या होगा?
मियांवाला नाम बदलने का विवाद अब केवल एक स्थानीय मुद्दा नहीं रह गया है, बल्कि यह उत्तराखंड की जनभावनाओं और पहचान से जुड़ा एक बड़ा सवाल बन गया है। अब सभी की निगाहें मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्णय पर हैं। अगर सरकार अपने फैसले पर अडिग रहती है, तो विरोध और तेज हो सकता है।
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शंकर दत्त पांडेय वरिष्ठ पत्रकार हैं और पिछले चार दशक से मीडिया की दुनिया में सक्रिय हैं। Uncut Times के साथ वरिष्ठ सहयोगी के रूप से जुड़े हैं। उत्तराखंड की पत्रकारिता में जीवन का बड़ा हिस्सा बिताया है। कुमाऊं के इतिहास की अच्छी जानकारी रखते हैं। दर्जनों पत्र-पत्रिकाओं में समसामयिक और शोधपरक लेख प्रकाशित। लिखने-पढ़ने और घूमने में रुचि। इनसे SDPandey@uncuttimes.com पर संपर्क कर सकते हैं।
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