एक राष्ट्र एक चुनाव : शौर्य फाउंडेशन की गोष्ठी, जानिए विशेषज्ञों के तर्क

एक राष्ट्र एक चुनाव शौर्य फाउंडेशन की गोष्ठी, जानिए विशेषज्ञों के तर्क

लखनऊ। देश में लंबे समय से चर्चा का विषय बना ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ (One Nation One Election) एक बार फिर से केंद्र में आ गया है। इसी विषय को लेकर आज शौर्य फाउंडेशन द्वारा राजधानी लखनऊ में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में अनेक सामाजिक चिंतकों, प्रबुद्धजनों और फाउंडेशन के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने भाग लिया और इस विचारधारा के लाभ और संभावित चुनौतियों पर गहन चर्चा की।

विशेषज्ञों ने रखे विचार

इस गोष्ठी में विभिन्न सामाजिक और प्रबुद्ध व्यक्तियों ने हिस्सा लिया और इस अवधारणा के लाभ, चुनौतियों और संभावनाओं पर अपने विचार व्यक्त किए। शौर्य फाउंडेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अनुपम सिंह भंडारी, राष्ट्रीय मुख्य संरक्षक पान सिंह भंडारी, राष्ट्रीय संयोजक आशुतोष वर्मा सहित अन्य वरिष्ठ पदाधिकारियों ने इस अवधारणा के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला।

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एक राष्ट्र एक चुनाव क्या है?

एक राष्ट्र एक चुनाव एक ऐसी अवधारणा है, जिसमें पूरे देश में लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, पंचायतों और नगर पालिकाओं के चुनाव एक साथ कराए जाते हैं। यह प्रक्रिया न केवल मतदान को सुगम बनाती है, बल्कि संसाधनों के उपयोग को भी अनुकूलित करती है। इस अवधारणा को लागू करने के लिए व्यापक संवैधानिक और कानूनी बदलावों की आवश्यकता होगी।

एक राष्ट्र एक चुनाव के लाभ

मतदाताओं के लिए सुविधा और मतदान प्रतिशत में वृद्धि

डॉ. अनुपम सिंह भंडारी ने अपने संबोधन में बताया कि एक राष्ट्र एक चुनाव से मतदाताओं को कई बार मतदान केंद्रों पर जाने की आवश्यकता नहीं होगी, जिससे उनकी सुविधा बढ़ेगी। इससे मतदाता थकान से बचेंगे और मतदान प्रतिशत में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। उन्होंने कहा, “बार-बार होने वाले चुनाव अनिश्चितता का माहौल पैदा करते हैं, जो नीतिगत निर्णयों को प्रभावित करता है। एक साथ चुनाव होने से नीतियों में स्थिरता और निश्चितता आएगी।”

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आर्थिक स्थिरता और विकास को बढ़ावा

शौर्य फाउंडेशन के राष्ट्रीय मुख्य संरक्षक पान सिंह भंडारी ने जोर देकर कहा कि एक साथ चुनाव होने से आर्थिक स्थिरता को बल मिलेगा। “जब सरकार के तीनों स्तरों पर एक साथ चुनाव होंगे, तो उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान कम होगा। प्रवासी श्रमिकों को बार-बार वोट डालने के लिए छुट्टी लेने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी, जिससे व्यवसायों को नीतिगत परिवर्तनों के डर के बिना निर्णय लेने में आसानी होगी,” उन्होंने बताया।

वित्तीय बोझ में कमी

राष्ट्रीय संयोजक आशुतोष वर्मा ने वित्तीय पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा, “एक राष्ट्र एक चुनाव से सरकारी खजाने पर पड़ने वाला वित्तीय बोझ कम होगा। बार-बार होने वाले चुनावों पर होने वाला दोहरा खर्च बचेगा, जिससे संसाधनों का बेहतर उपयोग हो सकेगा।” उन्होंने यह भी बताया कि इससे पूंजी निवेश और परिसंपत्ति सृजन को बढ़ावा मिलेगा।

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शासन पर ध्यान और सार्वजनिक सेवाओं में सुधार

कार्यकारिणी सदस्य दिनेश उप्रेती ने कहा कि एक राष्ट्र एक चुनाव से चुनावी कैलेंडर का समन्वय होगा, जिससे शासन के लिए अधिक समय उपलब्ध होगा। “इससे सरकारें निर्बाध सार्वजनिक सेवाएं प्रदान कर सकेंगी और नीतिगत निष्क्रियता को रोका जा सकेगा,” उन्होंने जोड़ा।

सामाजिक सद्भाव और अपराध में कमी

शौर्य फाउंडेशन के सदस्य बलवंत सिंह देवड़ी ने बताया कि एक साथ चुनाव होने से चुनावी विवाद और अपराधों में कमी आएगी। “इससे अदालतों पर बोझ कम होगा और सामाजिक असामंजस्यता को कम करने में मदद मिलेगी,” उन्होंने कहा। उत्तर प्रदेश प्रभारी दिनेश श्रीवास्तव ने भी इस बात पर सहमति जताई कि हर पांच साल में एक बार होने वाले चुनाव सामाजिक संघर्ष को कम करेंगे।

संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग

डॉ. अमित पांडे ने बताया कि एक राष्ट्र एक चुनाव से प्रयासों का दोहराव रुकेगा। “राजनीतिक कार्यकर्ताओं, सरकारी अधिकारियों और सुरक्षा बलों का समय और ऊर्जा बचेगी, जिसे विकास कार्यों में लगाया जा सकता है,” उन्होंने कहा।

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एक राष्ट्र एक चुनाव की चुनौतियां

मध्यावधि चुनाव और संवैधानिक जटिलताएं

हालांकि, गोष्ठी में इस अवधारणा की चुनौतियों पर भी चर्चा की गई। शौर्य फाउंडेशन के राष्ट्रीय महासचिव विजेंद्र मिश्रा ने कुछ संभावित नुकसानों पर प्रकाश डाला। विजेंद्र मिश्रा ने बताया कि मध्यावधि चुनाव या राष्ट्रपति शासन जैसी परिस्थितियों में एक राष्ट्र एक चुनाव की अवधारणा को लागू करने में कई जटिलताएं हो सकती हैं। “यदि कोई पार्टी बहुमत हासिल करने में असफल रहती है, तो ऐसी स्थिति से निपटने के लिए अभी कोई स्पष्ट नीति नहीं है,” उन्होंने कहा। इसके अलावा, इस अवधारणा को लागू करने के लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी, जिसे राज्य विधानसभाओं द्वारा अनुमोदित करना होगा।

क्षेत्रीय दलों पर प्रभाव

मिश्रा ने यह भी बताया कि एक साथ चुनाव होने से क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की संभावनाएं प्रभावित हो सकती हैं। “क्षेत्रीय दल स्थानीय मुद्दों को राष्ट्रीय दलों की तुलना में कम प्रभावी ढंग से उठा पाएंगे, क्योंकि उनके पास संसाधन और वित्तीय क्षमता सीमित होती है,” उन्होंने कहा।

राष्ट्रीय बनाम क्षेत्रीय मुद्दे

गोष्ठी में यह भी चर्चा हुई कि एक राष्ट्र एक चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे क्षेत्रीय मुद्दों पर हावी हो सकते हैं, जिससे राज्य स्तर के चुनावी नतीजे प्रभावित हो सकते हैं। इससे क्षेत्रीय दलों के लिए मतदाताओं तक अपनी बात पहुंचाना मुश्किल हो सकता है।

शौर्य फाउंडेशन का योगदान

शौर्य फाउंडेशन ने इस गोष्ठी के माध्यम से एक राष्ट्र एक चुनाव जैसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दे पर जागरूकता बढ़ाने का प्रयास किया है। फाउंडेशन के पदाधिकारियों ने इस अवधारणा के विभिन्न पहलुओं को जनता के सामने रखा और इसके लाभों और चुनौतियों पर खुलकर चर्चा की। इस गोष्ठी में न केवल इस विषय पर विचार-विमर्श का मंच बनी, बल्कि नीति निर्माताओं और आम जनता के बीच इस मुद्दे को और प्रासंगिक बनाने की कोशिश की गई।

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