Aurangzeb Controversy :औरंगजेब की कब्र पर विवाद क्यों, कितने मंदिर तुड़वाए?

Aurangzeb Controversy

Aurangzeb Controversy : मुग़ल बादशाह औरंगजेब का विवाद एक बार फिर चर्चा के केंद्र में है। एक ओर जहां औरंगजेब की कब्र को हटाने की मांग उठ रही है, दूसरे ओर इसे लेकर नागपुर और अन्य स्थानों पर सांप्रदायिक हिंसा भी सामने आ रही है। औरंगजेब का नाम भारतीय इतिहास में हमेशा से ही एक विवादित शासक के रूप में देखा गया है। उनके शासन को जहां एक ओर सैन्य विस्तार और प्रशासनिक दक्षता के लिए सराहा जाता है, वहीं दूसरी ओर हिंदू मंदिरों को तोड़ने, जज़िया कर लगाने और सिख गुरु तेग बहादुर की हत्या जैसे फैसलों के लिए उनकी कड़ी आलोचना होती रही है।

यह भी पढ़ें : पाकिस्तान में है वो मंदिर, जहां से शुरू हुआ हिंदुओं का त्योहार

छावा फिल्म में औरंगजेब में बारे में क्या है?

फिल्म ‘छावा’ के रिलीज़ के बाद, औरंगजेब की भूमिका को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ है। यह फिल्म छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन पर आधारित है, जिन्होंने अपने पिता शिवाजी महाराज के निधन के बाद मराठा साम्राज्य का नेतृत्व किया था। फिल्म में औरंगजेब के शासनकाल की घटनाओं को दर्शाया गया है, जिससे कुछ समूहों में असंतोष फैल गया है। फिल्म पर इतिहास को गलत तरीके से प्रस्तुत करने का आरोप लगाया गया है, जिसके परिणामस्वरूप निर्माताओं के खिलाफ 100 करोड़ रुपये के मानहानि का दावा करने की धमकी दी गई है। शिकायतकर्ताओं का कहना है कि फिल्म में ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ की गई है, जिससे समुदायों में तनाव बढ़ा है। इन विवादों के बीच, महाराष्ट्र के नागपुर में औरंगजेब की कब्र को हटाने की मांग को लेकर हिंसा भड़क उठी। दो गुटों के बीच संघर्ष के दौरान कई वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया और पुलिस पर पथराव हुआ। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि यह हिंसा पूर्व नियोजित प्रतीत होती है और ‘छावा’ फिल्म ने औरंगजेब के खिलाफ लोगों के गुस्से को भड़का दिया है।

इससे पहले भी विवाद हुए

हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने औरंगजेब के नाम पर रखे गए शहर औरंगाबाद का नाम बदलकर छत्रपति संभाजीनगर कर दिया है। शिवसेना और भाजपा ने इस फैसले को “हिंदू अस्मिता की जीत” बताया है। इस फैसले के बाद से ही महाराष्ट्र की राजनीति में हलचल मच गई है। AIMIM और अन्य मुस्लिम संगठनों ने इस नाम परिवर्तन का विरोध किया है।  इसके अलावा, विश्व हिंदू परिषद (VHP) और बजरंग दल ने महाराष्ट्र में औरंगजेब की कब्र को हटाने की मांग की है। VHP का कहना है कि औरंगजेब की कब्र गुलामी का प्रतीक है और इसे हटाना हिंदू स्वाभिमान की बहाली का प्रतीक होगा। महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी कहा कि “भारत में औरंगजेब का महिमामंडन स्वीकार नहीं किया जाएगा।”

यह भी पढ़ें : औरंगजेब का संक्षिप्त जीवन परिचय

औरंगजेब की कब्र कहां है?

मुगल सम्राट औरंगजेब की कब्र महाराष्ट्र राज्य के खुलदाबाद (औरंगाबाद के पास) में स्थित है। यह कब्र खुलदाबाद के दरगाह परिसर में स्थित है, जिसे सूफी संत शेख जैनुद्दीन के मकबरे के पास बनाया गया है। औरंगजेब की मृत्यु 3 मार्च 1707 को अहमदनगर (महाराष्ट्र) में हुई थी। उनकी इच्छा के अनुसार, उन्हें एक सादगीपूर्ण कब्र में दफनाया गया था। कब्र बिना किसी भव्य निर्माण के साधारण पत्थरों से बनी है, जिसे सफेद संगमरमर की एक छोटी सी सीमा से घेरा गया है। इस कब्र का रखरखाव हैदराबाद के निजाम द्वारा किया गया था। औरंगजेब की कब्र को देखने के लिए इतिहास प्रेमी और पर्यटक आज भी खुलदाबाद जाते हैं। इसे भारतीय इतिहास में मुगल शासन के अंत और नए युग की शुरुआत के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।

औरंगजेब के बारे में इतिहास क्या कहता है?

औरंगजेब ने 1658 से 1707 तक लगभग 49 साल तक भारत पर शासन किया। यह मुग़ल साम्राज्य का सबसे बड़ा विस्तारकाल था। औरंगजेब के शासनकाल में भारत की सीमाएं सबसे अधिक फैलीं, लेकिन उनके शासन को कट्टर इस्लामी कानूनों और धार्मिक असहिष्णुता के लिए याद किया जाता है। इतिहासकारों के अनुसार, औरंगजेब ने कई हिंदू मंदिरों को तुड़वाया, जिनमें काशी विश्वनाथ मंदिर और मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि मंदिर भी शामिल हैं। इसके अलावा, उन्होंने गैर-मुस्लिमों पर जज़िया कर लगाया, जिससे हिंदू समाज में असंतोष फैल गया। हालांकि, कुछ इतिहासकारों का मानना है कि औरंगजेब ने कई हिंदू अधिकारियों को उच्च पदों पर नियुक्त किया और कुछ मंदिरों को दान भी दिया। इतिहासकार इरफान हबीब का कहना है कि औरंगजेब को सिर्फ एक धर्मांध शासक के रूप में देखना सही नहीं होगा। उनके शासन में सैन्य विस्तार और प्रशासनिक सुधार भी हुए थे।

औरंगजेब से जुड़े ऐतिहासिक शोध पत्र और दस्तावेज़ देखें : भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (ICHR) 

औरंगजेब पर राजनीतिक घमासान क्यों?

औरंगजेब को लेकर चल रही बहसें इतिहास और राजनीति के बीच उलझ गई हैं। महाराष्ट्र सरकार ने औरंगजेब की कब्र के आसपास धारा 144 लागू कर दी है। पुलिस ने कब्र के बाहर सीसीटीवी कैमरे लगाए हैं और 50 से अधिक सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए हैं। महाराष्ट्र पुलिस के अनुसार स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में है।एक ओर इतिहासकार उनके शासनकाल को सैन्य और प्रशासनिक दृष्टि से सफल मानते हैं, वहीं दूसरी ओर हिंदू संगठनों के लिए औरंगजेब का नाम गुलामी और धार्मिक असहिष्णुता का प्रतीक है। विशेषज्ञों का मानना है कि  भारत की राजनीति में औरंगजेब का नाम बार-बार इस्तेमाल किया जाता रहेगा। जब तक इतिहास को संतुलित तरीके से पेश नहीं किया जाएगा, तब तक औरंगजेब का नाम भारतीय राजनीति और सांस्कृतिक बहसों में बना रहेगा। हाल के वर्षों में, औरंगजेब को लेकर बनी वेब सीरीज़ (जैसे Taj: Divided by Blood) या किताबें (जैसे Audrey Truschke की Aurangzeb: The Man and The Myth) ने उनके चरित्र को लेकर नए सिरे से बहस छेड़ दी है।

यह भी पढ़ें : औरंगजेब के शासनकाल और नीतियों का विश्लेषण

पाठ्यक्रम में बदलाव पर विवाद

औरंगजेब के विवादित इतिहास का असर भारत की शिक्षा व्यवस्था पर भी पड़ा है। NCERT ने 2023 में इतिहास की किताबों से औरंगजेब के शासन से जुड़ी कई घटनाओं को हटा दिया। NCERT का तर्क था कि इससे सांप्रदायिक तनाव बढ़ सकता है और छात्रों पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के छात्रों ने इस फैसले का विरोध किया है। छात्रों का कहना है कि इतिहास को छिपाना या तोड़-मरोड़ कर पेश करना उचित नहीं है। इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने कहा कि “इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करना खतरनाक हो सकता है। औरंगजेब का शासन जटिल था और उसे एकतरफा तरीके से पेश नहीं किया जा सकता।”

अकादमिक दुनिया की प्रतिक्रिया

इतिहासकार इरफान हबीब का कहना है कि औरंगजेब को सिर्फ एक अत्याचारी के रूप में देखना गलत है। उनके अनुसार, औरंगजेब ने प्रशासनिक सुधार किए और सैन्य स्तर पर भारत को मज़बूत बनाया। प्रोफेसर रामचंद्र गुहा का भी मानना है कि औरंगजेब को “नायक” या “खलनायक” के रूप में पेश करना ऐतिहासिक रूप से गलत होगा। दूसरी ओर, हिंदुत्व संगठनों का कहना है कि औरंगजेब के शासनकाल में हिंदू समाज का दमन हुआ। आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि “हमें औरंगजेब की विरासत को खत्म करना चाहिए ताकि हिंदू समाज को न्याय मिल सके।”

सोशल मीडिया पर उबाल

औरंगजेब को लेकर सोशल मीडिया पर भी विवाद गहरा गया है। ट्विटर पर #Aurangzeb और #RemoveAurangzebTomb जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं। हिंदू संगठनों के समर्थकों ने औरंगजेब को “हिंदू विरोधी” बताते हुए तीखी प्रतिक्रिया दी है। वहीं, कुछ मुस्लिम संगठनों ने इसे “इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करने का प्रयास” बताया है। सोशल मीडिया पर कई झूठे दावे भी वायरल हो रहे हैं। एक पोस्ट में दावा किया गया कि औरंगजेब ने भारत में 10,000 से अधिक मंदिर तोड़े थे, जबकि ऐतिहासिक प्रमाण इस दावे का समर्थन नहीं करते।

हिंदू संगठनों का रुख

विश्व हिंदू परिषद (VHP) और बजरंग दल ने औरंगजेब की कब्र को हटाने की मांग की है। संगठन का कहना है कि औरंगजेब का महिमामंडन करना भारतीय संस्कृति के खिलाफ है। RSS के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि औरंगजेब की विरासत भारत के सांस्कृतिक मूल्यों के खिलाफ है। भाजपा के नेता टी. राजा सिंह ने भी कहा कि “औरंगजेब का नाम मिटाना ही भारत की सांस्कृतिक आजादी का प्रतीक होगा।”

यह भी पढ़ें : Facts and myths : चाय पीने से क्या होता है?

Uncut Times IPL 2025 ब्रेकिंग न्यूज़

Uncut Times हिंदी पत्रकारिता के अनुभवी मीडियाकर्मी। पिछले 30 सालों से प्रिंट और डिजिटल के विभिन्न माध्यमों के जरिए पत्रकारिता का लंबा अनुभव। हिंदी मीडिया की लेटेस्ट खबरें और सटीक जानकारियां। आप uncuttimesnews@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।


Discover more from Uncut Times - ब्रेकिंग न्यूज, फैक्ट चेक, विश्लेषण

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Scroll to Top