शरदेंदु सौरभ
प्रकृति के प्रति हमारी चेतना जगजाहिर है। पेड़-पौधों के प्रति इंसान की संवेदना उतनी ही गहरी है जितनी हम अपने पारिवारिक रिश्तों को निभाते समय अनुभव करते हैं। पाटों (तटों) पर सजे वृक्ष और पक्षियों का कलरव इंसानी अंतर्मन को प्रफुल्लित करता है। विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर इसी भावना का परिदृश्य खींचते हुए मैं वसुही नदी का उल्लेख करना चाहता हूं।
वसुही नदी : इतिहास और वर्तमान स्थिति
वसुही नदी जौनपुर जिले के कई हिस्सों से होती हुई गोमती नदी में मिलती है। मछलीशहर और बरसठी के बीच का वह क्षेत्र, जो दियावा महादेव के परिक्षेत्र से गुजरता है, वसुही नदी भी इन्हीं क्षेत्रों से होकर बहती है। वसुही नदी के तट पर खड़े होकर जब वर्तमान स्थिति को निहारते हैं, तो पीड़ा होती है कि यह नदी अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। आसपास के गांवों के लोगों से संवाद के दौरान यह जानकारी सामने आई कि नदी में पहले जलप्रवाह बना रहता था, लेकिन अब जन-उदासीनता की वजह से यह लगभग वीरान हो गई है।
क्यों जरूरी है पुनर्जीवित करना?
यदि जल का प्रवाह बना रहता, तो इससे कई समस्याओं का समाधान हो सकता था- जैसे सिंचाई की सुविधा, पशुओं के लिए पानी, और जल जीवन संतुलन। वसावनपुर के आसपास देखा गया कि वसुही नदी पूरी तरह सूख चुकी है। आज जब पर्यावरण और जल संरक्षण को लेकर हमारी संवेदनशीलता बढ़ी है, तो ऐसे समय में वसुही को पुनः सदानीरा बनाने के लिए हमें ठोस संकल्प लेना चाहिए। हमें समझना होगा कि हम अपनी संस्कृति और संस्कारों के लिए पहचाने जाते हैं- यही हमारी पहचान है, और इसी पहचान के सहारे हम दुनिया में अपना मुकम्मल स्थान पाते हैं।
विश्व से सीख: माओरी नदी की तरह वसुही के लिए संकल्प लें
न्यूजीलैंड में माओरी समुदाय ने अपनी नदी को बचाने के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। उन्हें सफलता मिली और वहां की अदालत ने नदी को कानूनी संरक्षित दर्जा प्रदान किया। आज वह नदी पर्यावरणीय संरक्षण का वैश्विक उदाहरण बन चुकी है। दुनिया ने जल के प्रति सम्मान करना हम भारतीयों से सीखा है। सरकार भी प्रकृति संरक्षण के प्रति सचेष्ट दिखाई देती है। हाल में वरुणा नदी को प्रवाही बनाने के लिए भी योजनाएं सामने आई हैं। ऐसे में वसुही नदी का उल्लेख स्वाभाविक हो जाता है, जो जौनपुर जिले की ऐतिहासिक विरासत की साक्षी है।
समाज की भूमिका: जिम्मेदारी किसकी?
ऐसे प्रयासों को केवल सरकारों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। समाज से जुड़े हर व्यक्ति का यह दायित्व बनता है कि वह अपनी भूमिका निभाए, ताकि आने वाली पीढ़ियां इन सरोकारों को समझ सकें और अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सकें। वसुही नदी को पुनर्जीवित कर हम जलीय जीवों का संरक्षण कर सकते हैं, जो गर्मियों की तपिश में दम तोड़ देते हैं। यह पशुओं के लिए भी पानी की पर्याप्त व्यवस्था कर सकती है। पक्षी भी इसके तटों पर आकर अपनी पिपासा शांत कर सकते हैं।
विश्व पर्यावरण दिवस: संकल्प करें, जल बचाएं
भविष्य में जल संकट की जो आशंकाएं सामने आ रही हैं, वे चौंकाने वाली हैं। जलस्तर तेजी से गिर रहा है और पीने के पानी की भारी किल्लत हो सकती है। ऐसे में समय रहते ठोस और कारगर कदम उठाना जरूरी है। आइए संकल्प करें, जल बचाएं। वसुही को बचाएं। कहीं ऐसा न हो जाए कि “लम्हों ने खता की थी, सदियों ने सजा पाई…।”
( युवा लेखक, कॉलमिस्ट शरदेंदु सौरभ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अधिवक्ता हैं।)


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