Good News : यूपी में 5000 डीजल बसें इलेक्ट्रिक बनेंगी

Good News : यूपी में 5000 डीजल बसें इलेक्ट्रिक बनेंगी

लखनऊ : उत्तर प्रदेश सरकार अब राज्य की पुरानी डीजल बसों को इलेक्ट्रिक बसों में बदलने की दिशा में बड़ा कदम उठा रही है। परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह के अनुसार, यह पहल न केवल पर्यावरण के लिए हितकारी होगी, बल्कि राज्य सरकार के खर्च में भी बड़ी बचत करेगी।

कानपुर वर्कशॉप से शुरू हुई पहल

कानपुर की राम मनोहर लोहिया वर्कशॉप में दो डीजल बसों को इलेक्ट्रिक बसों में रिट्रोफिटमेंट तकनीक के जरिए बदला जा चुका है। इन बसों को झांसी-ललितपुर रूट पर ट्रायल के लिए भेजा जाएगा। यदि ट्रायल सफल रहा, तो यह मॉडल आगे भी अपनाया जाएगा।

क्या है रिट्रोफिटमेंट तकनीक?

रिट्रोफिटमेंट एक ऐसी तकनीक है, जिसमें पुराने वाहनों के डीजल इंजन को हटाकर इलेक्ट्रिक मोटर, बैटरी, और चार्जिंग सिस्टम स्थापित किया जाता है। कल्याणी पावर ट्रेन और जीरो 21 जैसी कंपनियां तकनीकी सहायता दे रही हैं, जबकि बस की बॉडी का निर्माण परिवहन निगम स्वयं कर रहा है। परिवहन राज्यमंत्री दयाशंकर सिंह ने कहा, “रिट्रोफिटमेंट तकनीक से हम पुरानी बसों को नया जीवन दे रहे हैं। यह न केवल लागत प्रभावी है, बल्कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पर्यावरण संरक्षण के दृष्टिकोण को भी साकार करता है।”

राज्य में 5000 इलेक्ट्रिक बसों का लक्ष्य

परिवहन निगम ने अपने बेड़े में 5000 इलेक्ट्रिक बसें जोड़ने की महत्वाकांक्षी योजना बनाई है। यह योजना मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में हरित परिवहन को बढ़ावा देने के दृष्टिकोण का हिस्सा है। दयाशंकर सिंह ने बताया कि रिट्रोफिटमेंट और नई खरीद दोनों के माध्यम से यह लक्ष्य हासिल किया जाएगा। लखनऊ, कानपुर, प्रयागराज, वाराणसी, और आगरा जैसे प्रमुख शहरों में इलेक्ट्रिक बसों की संख्या बढ़ाई जाएगी। चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर: पूरे राज्य में 1000 से अधिक चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने की योजना है।

महाकुंभ में इलेक्ट्रिक बसों की भूमिका

हाल ही में महाकुंभ 2025 के दौरान उत्तर प्रदेश परिवहन निगम ने 220 इलेक्ट्रिक बसों का संचालन किया, जिनमें 20 एसी डबल-डेकर बसें शामिल थीं। इन बसों ने प्रयागराज में लाखों तीर्थयात्रियों को पर्यावरण के अनुकूल और सुविधाजनक परिवहन प्रदान किया। महाकुंभ में इन बसों की सफलता ने साबित किया कि इलेक्ट्रिक बसें बड़े पैमाने पर परिवहन की जरूरतों को पूरा कर सकती हैं।

क्यों जरूरी है डीजल बसों का इलेक्ट्रिक में परिवर्तन?

डीजल बसों की समय-सीमा

उत्तर प्रदेश परिवहन निगम की गाइडलाइंस के अनुसार, डीजल बसें 10 वर्ष की उम्र या 11 लाख किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद बेड़े से हटाई जाती हैं। हर साल बड़ी संख्या में बसें नीलामी के लिए भेजी जाती हैं, जिससे निगम को नई बसें खरीदने का अतिरिक्त खर्च वहन करना पड़ता है। रिट्रोफिटमेंट इस समस्या का एक स्थायी समाधान है, क्योंकि पुरानी बसों को इलेक्ट्रिक में बदलने से नई बसों की खरीद का खर्च बचता है। इलेक्ट्रिक बसों की परिचालन लागत डीजल बसों की तुलना में 30-40% कम होती है। यह प्रक्रिया पर्यावरणीय नियमों (जैसे BS-6 मानक) का पालन करती है।

पर्यावरणीय और आर्थिक लाभ

डीजल बसों का उपयोग वायु प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन का प्रमुख कारण है। उत्तर प्रदेश जैसे घनी आबादी वाले राज्य में, जहां लखनऊ, कानपुर, और आगरा जैसे शहर पहले से ही प्रदूषण की समस्या से जूझ रहे हैं, इलेक्ट्रिक बसें एक गेम-चेंजर साबित हो सकती हैं।

  • प्रदूषण में कमी: इलेक्ट्रिक बसें शून्य टेलपाइप उत्सर्जन करती हैं, जिससे AQI में सुधार होगा।

  • ईंधन बचत: डीजल की तुलना में बिजली की लागत कम है, जिससे परिवहन निगम का खर्च कम होगा।

  • यात्रियों की सुविधा: इलेक्ट्रिक बसें शांत और आरामदायक होती हैं, जिससे यात्रियों का अनुभव बेहतर होगा।

उत्तर प्रदेश में ई-मोबिलिटी पर जोर

डीजल बसों का उपयोग वायु प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन का प्रमुख कारण है। उत्तर प्रदेश जैसे घनी आबादी वाले राज्य में, जहां लखनऊ, कानपुर, और आगरा जैसे शहर पहले से ही प्रदूषण की समस्या से जूझ रहे हैं, इलेक्ट्रिक बसें एक गेम-चेंजर साबित हो सकती हैं। यह पहल न केवल पर्यावरण संरक्षण में मील का पत्थर साबित होगी, बल्कि प्रदेश के बजट पर भी सकारात्मक असर डालेगी। झांसी-ललितपुर ट्रायल के सफल होने पर जल्द ही राज्य के अन्य रूट्स पर भी इलेक्ट्रिक बसों का संचालन बढ़ाया जाएगा।

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