रूह अफजा क्यों चर्चा में है, कितना कारोबार, क्या इतिहास, जानें

रूह अफजा क्यों चर्चा में है, कितना कारोबार, क्या इतिहास, जानें

Rooh afza controversy history and facts : रूह अफजा एक बार फिर चर्चा में है। पिछले दिनों एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें योग गुरु बाबा रामदेव ने एक वीडियो में “शरबत जिहाद” शब्द का उपयोग करते हुए दावा किया कि कुछ शरबत कंपनियां मुनाफे से मस्जिदें और मदरसे बनवा रही हैं। माना जा रहा है कि उनका इशारा हमदर्द की रूह अफ़ज़ा की ओर था ।​ रूह अफजा न केवल एक पेय है, बल्कि 1907 में दिल्ली की गलियों से शुरू हुआ यह शरबत आज भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में एक लोकप्रिय ब्रांड बन चुका है। आइए जानते हैं कि रूह अफजा क्यों चर्चा में है। 

रूह अफजा की रहस्यमयी रेसिपी

रूह अफ़ज़ा की रेसिपी एक अच्छी तरह से छिपा हुआ रहस्य है। हालांकि, यह बात सभी जानते हैं कि इसमें गुलाब, फल, जड़ी-बूटियां, और ठंडी तासीर वाले तत्व शामिल हैं। कुछ सामान्य सामग्रियां जो इसके स्वाद को खास बनाती हैं:

– कुल्फा साग, कासनी, काले अंगूर
– यूरोपियन सफेद लिली, ब्लू स्टार वाटर लिली
– धनिया, पुदीना, और कमल का अर्क
– सोडियम, पोटैशियम, और कैल्शियम जैसे मिनरल्स

यह शरबत न केवल स्वादिष्ट है, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है। यह डिहाइड्रेशन, पाचन समस्याओं, और गर्मी से होने वाली थकान को कम करता है।

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रूह अफजा क्यों चर्चा में है?

1. बाबा रामदेव का विवादास्पद बयान

हाल ही में योग गुरु बाबा रामदेव ने “शरबत जिहाद” शब्द का उपयोग करते हुए दावा किया कि कुछ शरबत कंपनियां अपने मुनाफे से मस्जिदें और मदरसे बनवा रही हैं। उन्होंने लोगों से पतंजलि का गुलाब शरबत खरीदने की अपील की, जिससे माना जा रहा है कि उनका इशारा हमदर्द की रूह अफ़ज़ा की ओर था। इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर रूह अफ़ज़ा को लेकर बहस छिड़ गई।

2. नए उत्पाद और मार्केटिंग रणनीति

हमदर्द लैबोरेटरीज ने हाल ही में रूह अफ़ज़ा के नए वेरिएंट्स जैसे योगर्ट ड्रिंक, मिल्कशेक और आइसक्रीम लॉन्च किए हैं। ये उत्पाद युवा पीढ़ी को आकर्षित करने के लिए बनाए गए हैं, जिससे ब्रांड को नई पहचान मिली है।

3. सोशल मीडिया पर वायरल ट्रेंड्स

रूह अफ़ज़ा को लेकर सोशल मीडिया पर कई रेसिपी वीडियोज और मीम्स वायरल हो रहे हैं। लोग इसे फालूदा, लस्सी, और यहां तक कि कॉकटेल्स में इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे यह ट्रेंडी बन गया है।

4. रमज़ान और सांस्कृतिक महत्व

रमज़ान के दौरान रूह अफ़ज़ा की मांग हमेशा बढ़ जाती है। इफ्तार के समय इसकी ठंडक और स्वाद इसे हर घर का पसंदीदा बनाता है। इस बार रमज़ान में इसकी बिक्री ने नए रिकॉर्ड बनाए। 

5. कानूनी विवाद

2022 में दिल्ली हाई कोर्ट ने अमेज़न को पाकिस्तान में बने रूह अफ़ज़ा की बिक्री रोकने का आदेश दिया था। इसके अलावा, 2023 में “दिल अफ़ज़ा” नामक एक समान शरबत के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जीत ने भी रूह अफ़ज़ा की ब्रांड वैल्यू को और मजबूत किया। 

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रूह अफ़ज़ा का व्यापारिक साम्राज्य

वैश्विक बिक्री

2023 में रूह अफ़ज़ा की वैश्विक बिक्री लगभग ₹400 करोड़ थी। भारत में इसकी बिक्री सबसे ज्यादा है, जो कुल बिक्री का एक बड़ा हिस्सा है।

निर्यात

रूह अफ़ज़ा 25 से ज्यादा देशों में निर्यात होता है, जिसमें इंग्लैंड, न्यूजीलैंड, फ्रांस, जर्मनी और खाड़ी देश शामिल हैं।

उत्पाद रेंज

हमदर्द के पास 600 से ज्यादा उत्पाद हैं, जैसे साफी, रोगन बादाम शिरीन और पचनौल, जो इसके कारोबार को और मजबूती देते हैं।

रोजगार सृजन

हमदर्द हजारों लोगों को रोजगार देता है और इसका सामाजिक कल्याण में भी योगदान है, क्योंकि यह एक वक्फ (इस्लामिक ट्रस्ट) के तहत संचालित होता है।

रूह अफजा का इतिहास

रूह अफ़ज़ा की कहानी 1906 में शुरू हुई, जब यूनानी चिकित्सा के विशेषज्ञ हकीम हाफिज अब्दुल मजीद ने पुरानी दिल्ली के हौज काजी इलाके में एक हर्बल दुकान खोली। उनका मकसद था गर्मियों की भीषण गर्मी में लोगों को लू, डिहाइड्रेशन और हीट स्ट्रोक से बचाने वाली एक दवा बनाना। इस तरह 1907 में रूह अफ़ज़ा का जन्म हुआ, जिसका उर्दू में मतलब है “रूह को तरोताजा करने वाला”।

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प्रारंभिक दिन

शुरुआत में रूह अफ़ज़ा को शराब की बोतलों में पैक किया जाता था। 1910 में मिर्जा नूर अहमद ने इसका प्रतिष्ठित लोगो डिजाइन किया, जिसे बॉम्बे के बोल्टन प्रेस में छापा गया।

बंटवारा और विस्तार

1947 में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के दौरान हमदर्द कंपनी भी बंट गई। हकीम मजीद के बड़े बेटे हकीम अब्दुल हमीद भारत में रहे और रूह अफ़ज़ा का उत्पादन जारी रखा। उनके छोटे बेटे हकीम मोहम्मद सईद पाकिस्तान चले गए और वहां हमदर्द पाकिस्तान की स्थापना की। बाद में बांग्लादेश बनने पर वहां भी रूह अफ़ज़ा का उत्पादन शुरू हुआ।

वैश्विक पहचान

आज रूह अफ़ज़ा भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में अलग-अलग स्वाद और पर्यावरण के आधार पर थोड़ा बदलाव के साथ बनाया जाता है। फिर भी, इसका मूल यूनानी फॉर्मूला वही है, जिसमें गुलाब, जड़ी-बूटियां, फल, और मसाले शामिल हैं। 

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रूह अफजा का महत्व और चुनौतियां

रूह अफजा सिर्फ एक ड्रिंक नहीं, बल्कि एक भावना है। यह भारत की गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक है। रमजान में इफ्तार से लेकर गर्मियों में मेहमानों की खातिरदारी तक, रूह अफजा हर मौके पर मौजूद रहता है। बॉलीवुड में भी इसका जिक्र कई बार हुआ है, और इसे खूबसूरती और ताजगी का पर्याय माना जाता था। रूह अफजा ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। 2019 में कच्चे माल की कमी के कारण इसका उत्पादन प्रभावित हुआ था, जिससे बाजार में इसकी किल्लत हो गई। हाल का रामदेव विवाद भी इसके लिए एक चुनौती बना है, लेकिन हमदर्द ने हमेशा की तरह अपनी गरिमा बनाए रखी। कंपनी ने स्पष्ट किया कि रूह अफजा एक पारंपरिक और समावेशी ब्रांड है, जो सभी समुदायों के लिए है।

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Vishesh senior researcher

डॉ. विशेष रिसर्च और स्वास्थ्य के मामलों पर पकड़ रखते हैं। जामिया मिलिया इस्लामिया से पत्रकारिता के गुर सीखने के बाद देश-दुनिया के कई नामचीन संस्थानों से जुड़े रहे हैं। पिछले 18 साल से रिसर्च से जुड़े संस्थानों की कार्यप्रणाली पर उनकी गहरी नजर रहती है। शोध, इंटरव्यू और सर्वे में महारत। इन दिनों Uncut Times की रिसर्च टीम काे समृद्ध कर रहे हैं। इनसे vishesh@uncuttimes.com पर जुड़ सकते हैं।


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