मंदिर में चावल चढ़ाने का अजीबो-गरीब आदेश देने वाले इंजीनियर का ट्रांसफर

अजीबो-गरीब आदेश : कर्मचारियों को मंदिर में चावल चढ़ाने को कहा, अफसर को नोटिस जारी

Dehradun/Champawat : कर्मचारियों को घर से दो मुट्ठी चावल लाकर मंदिर में चढ़ाने का अजीबो-गरीब आदेश देने के मामले में बड़ी खबर है। उत्तराखंड शासन ने  लोक निर्माण विभाग (PWD) में कार्यरत अधिशासी अभियंता आशुतोष कुमार को तत्काल प्रभाव से ट्रांसफर कर दिया है। आपके लोकप्रिय समाचार पोर्टल Uncut Times ने इस समाचार को प्रमुखता से प्रकाशित किया था। इसके बाद इस विवादास्पद मामले से जुड़े अधिशासी अभियंता आशुतोष कुमार के पौड़ी तबादले का आदेश जारी हुआ है।

विवादित आदेश ने मचाई हलचल

लोहाघाट स्थित राष्ट्रीय राजमार्ग खंड कार्यालय से एक अधिकारी की सेवा पुस्तिका (Service Book) कार्यालय से गायब हो गई थी। इसके बाद 16 मई 2025 को अधिशासी अभियंता आशुतोष कुमार द्वारा आदेश संख्या 836/01ई0 जारी किया गया था। इस आदेश में कर्मचारियों को निर्देश दिया गया था कि वे दैवीय उपाय के रूप में मंदिर में चावल चढ़ाएं ताकि सेवा पुस्तिका की समस्या का समाधान हो सके। यह आदेश सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और देखते ही देखते यह सरकारी महकमे के लिए प्रशासनिक शर्मिंदगी का विषय बन गया। आदेश की प्रति सामने आते ही अधिकारियों की कार्यप्रणाली और निर्णय लेने की क्षमता पर सवाल खड़े होने लगे।

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शासन की कड़ी प्रतिक्रिया: तुरंत तबादला और नोटिस

मुख्य अभियंता एवं विभागाध्यक्ष (व्यवस्थापन ‘क’ वर्ग), देहरादून ने इस पूरे प्रकरण को कर्मचारी आचरण नियमावली-2002 का उल्लंघन माना। अधिशासी अभियंता आशुतोष कुमार को नोटिस जारी कर तीन दिन में स्पष्टीकरण देने का आदेश दिया गया। साथ ही, उन्हें लोहाघाट से स्थानांतरित कर क्षेत्रीय मुख्य अभियंता कार्यालय, पौड़ी गढ़वाल में सम्बद्ध किया गया है। हालांकि शासन ने स्पष्ट किया कि यह तबादला प्रशासनिक आधार पर किया गया है। आशुतोष कुमार अब गढ़वाल क्षेत्र में अपनी नई जिम्मेदारी संभालेंगे। 

कर्मचारी आचरण नियमावली क्या कहती है?

सरकारी कर्मचारियों के लिए कर्मचारी आचरण नियमावली-2002 एक स्पष्ट मार्गदर्शक है। इस नियमावली के अंतर्गत—

  • किसी भी अधिकारी को ऐसा आदेश जारी करने का अधिकार नहीं है जो गैर-वैज्ञानिक, गैर-प्रशासनिक, या अंधविश्वास को बढ़ावा देता हो।
  • सेवा पुस्तिका एक कानूनी दस्तावेज है और उसका गायब होना एक गंभीर प्रशासनिक चूक है, जिसका समाधान केवल कानूनी जांच या FIR के माध्यम से किया जा सकता है, न कि धार्मिक अनुष्ठानों से।

कई सवाल

यह सवाल अब आम जनता के साथ-साथ शासन और प्रशासन के भीतर भी गूंज रहा है। जिस विभाग की जिम्मेदारी सड़कों, पुलों और राष्ट्रीय राजमार्गों के रखरखाव की है, वहां दैवीय उपायों को आधार बनाकर आदेश देना न केवल उसकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगाता है, बल्कि भविष्य में कर्मचारियों की जवाबदेही को भी कमजोर कर सकता है। चावल चढ़ाने जैसा आदेश केवल नियमों की अवहेलना नहीं, बल्कि एक प्रशासनिक विचारशून्यता का प्रतीक बन गया। सेवा पुस्तिका एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है, जिसमें कर्मचारी की नियुक्ति, पदोन्नति, और पेंशन जैसे विवरण दर्ज होते हैं। इसका गायब होना गंभीर लापरवाही का मामला है, जिसके लिए सामान्य प्रक्रिया में जांच या FIR दर्ज की जाती है। लेकिन इस मामले में मंदिर में चावल चढ़ाने का निर्देश प्रशासनिक गंभीरता को कमजोर करता है।

सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स—विशेषकर Facebook और X (पूर्व में Twitter)—पर इस आदेश की खूब आलोचना हुई। यूजर्स ने इसे “अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाला”, “गैर-जिम्मेदाराना”, और “प्रशासनिक पाखंड” तक कह डाला। यह आदेश जैसे ही सोशल मीडिया पर सामने आया, यह तेजी से वायरल हो गया। फेसबुक और X पर यूजर्स ने इस आदेश की कॉपी साझा करते हुए तीखी प्रतिक्रियाएं दीं। कई लोगों ने इसे अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाला और गैर-जिम्मेदाराना करार दिया। एक X यूजर ने लिखा, “21वीं सदी में सरकारी अधिकारी भगवान के भरोसे काम कर रहे हैं?  सेवा पुस्तिका ढूंढने के लिए मंदिर जाना पड़ेगा?” वहीं, एक अन्य यूजर ने इसे उत्तराखंड PWD में प्रशासनिक अक्षमता का प्रतीक बताया।

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