Pithoragarh news : आदि कैलाश यात्रा मार्ग पर एक बार फिर बड़ी चट्टानों के गिरने से आवागमन प्रभावित हुआ है। भारी वर्षा के बाद पिथौरागढ़ में एलागाड़ के पास राष्ट्रीय राजमार्ग-9 पर पहाड़ का एक बड़ा हिस्सा टूटकर सड़क पर गिर गया, जिससे मार्ग पूरी तरह बंद हो गया है। सीमा सड़क संगठन (BRO) की टीमें मलबा हटाने और सड़क को बहाल करने के लिए युद्धस्तर पर काम कर रही हैं। सीमांत जिले पिथौरागढ़ में इन दिनों मौसम की मार और भूस्खलन का खतरा लगातार बना हुआ है।
क्या है आदि कैलाश यात्रा?
आदि कैलाश (अथवा छोटा कैलाश) हिंदू धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है, जिसे भगवान शिव का निवास माना जाता है। यह स्थान समुद्र तल से करीब 6191 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। हर साल सैकड़ों श्रद्धालु इस पवित्र स्थल की कठिन यात्रा पर निकलते हैं। यात्रा का आयोजन कुमाऊं मंडल विकास निगम (KMVN) के माध्यम से किया जाता है। आदि कैलाश, उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में भारत-चीन सीमा के पास स्थित एक पवित्र तीर्थ स्थल है, जिसे छोटा कैलाश के नाम से भी जाना जाता है। यह पंच कैलाश में दूसरा सबसे महत्वपूर्ण स्थल माना जाता है।
भूस्खलन ने बिगाड़े हालात
आदि कैलाश यात्रा इन दिनों चल रही है। 20 मई को सुबह हुए इस भूस्खलन ने एलागाड़ से ज्योलिंगकांग तक के मार्ग को पूरी तरह बंद कर दिया। भारी मलबा और चट्टानें सड़क पर गिरने से दोनों ओर सैकड़ों वाहन और यात्री फंस गए हैं। स्थानीय निवासियों के अनुसार, यह क्षेत्र पहले भी भूस्खलन की चपेट में रहा है, और सड़क की स्थिति पहले से ही खतरनाक थी। भूस्खलन के कारण आदि कैलाश यात्रा पर गए सैकड़ों श्रद्धालु और पर्यटक फंसे हुए हैं। यह यात्रा, जो काठगोदाम या हल्द्वानी से शुरू होकर धारचूला, गुंजी, और ज्योलिंगकांग तक जाती है, अपने कठिन और जोखिम भरे रास्तों के लिए जानी जाती है। भूस्खलन के बाद सड़क के दोनों ओर लंबी कतारें लग गई हैं, और यात्रियों को घंटों इंतजार करना पड़ रहा है।
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मलबा हटाने का काम जारी
सीमा सड़क संगठन (BRO) की एक टीम तुरंत घटनास्थल पर पहुंची और मलबा हटाने का कार्य शुरू कर दिया। BRO के एक अधिकारी ने बताया, “हम पूरी कोशिश कर रहे हैं कि जल्द से जल्द रास्ता साफ कर दिया जाए ताकि फंसे हुए लोगों को सुरक्षित निकाला जा सके।” मलबा हटाने के लिए पोकलैंड मशीनें और अन्य उपकरणों का उपयोग किया जा रहा है, लेकिन बारिश और अस्थिर पहाड़ी ढलानों के कारण काम में चुनौतियां आ रही हैं। जिला प्रशासन ने यात्रियों से अपील की है कि वे धैर्य बनाए रखें और सुरक्षा निर्देशों का पालन करें।
आदि कैलाश यात्रा मार्ग की चुनौतियां
आदि कैलाश यात्रा मार्ग अपनी प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन यह अपने कठिन भौगोलिक हालात के लिए भी जाना जाता है। मार्ग का अधिकांश हिस्सा मोटरेबल है, लेकिन कुछ हिस्सों में पैदल यात्रा करनी पड़ती है। यह मार्ग 5,945 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, और मानसून के दौरान भूस्खलन और सड़क अवरुद्ध होने की घटनाएं आम हैं।
- एलागाड़ से ज्योलिंगकांग: इस हिस्से में सड़क की स्थिति खतरनाक है, क्योंकि सड़क कटिंग और भूस्खलन के कारण संकरी और अस्थिर हो गई है।
- बूंदी से ज्योलिंगकांग: यह हिस्सा भी जोखिम भरा है, जहां संकरी सड़कें और खड़ी चट्टानें यात्रा को चुनौतीपूर्ण बनाती हैं।
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उत्तराखंड में भूस्खलन का इतिहास और कारण
उत्तराखंड की भौगोलिक संरचना इसे भूस्खलन, भूकंप, और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशील बनाती है। पिथौरागढ़ और व्यास घाटी जैसे क्षेत्रों में भारी बारिश और अस्थिर चट्टानों के कारण भूस्खलन की घटनाएं बार-बार होती हैं। कुछ प्रमुख भूस्खलन की घटनाएं:
- 1998, मालपा: भूस्खलन में 350 लोगों की मृत्यु।
- 2004, टिहरी: टिहरी बांध में टनल धंसने से 29 लोगों की जान गई।
- 2023, पिथौरागढ़: धारचूला और गुंजी में भूस्खलन से 300 से अधिक लोग फंसे।
- 2024, जोशीमठ: बद्रीनाथ हाईवे पर भूस्खलन से 3,000 यात्री फंसे।
इन घटनाओं से स्पष्ट है कि उत्तराखंड में भूस्खलन एक बार-बार होने वाली समस्या है, जिसके लिए दीर्घकालिक समाधान की आवश्यकता है। भारी बारिश, चट्टानों का अत्यधिक अपक्षय, और मानवीय गतिविधियां जैसे सड़क कटिंग और निर्माण कार्य भूस्खलन के प्रमुख कारण हैं।
यात्रियों के लिए सुझाव
वर्तमान में आदि कैलाश यात्रा मार्ग पूरी तरह बंद है, और वैकल्पिक मार्गों की उपलब्धता सीमित है। यात्रियों को निम्नलिखित सुझाव दिए गए हैं:
- मौसम की जानकारी: यात्रा शुरू करने से पहले मौसम विभाग और स्थानीय प्रशासन से मार्ग की स्थिति की जानकारी लें।
- सुरक्षा उपाय: पैदल यात्रा के दौरान संकरे और जोखिम भरे रास्तों पर सावधानी बरतें।
- आपातकालीन संपर्क: स्थानीय पुलिस, BRO, या NDRF के हेल्पलाइन नंबर अपने पास रखें।
- यात्रा स्थगित करें: यदि संभव हो, तो मानसून के दौरान यात्रा टालें, क्योंकि जून से अगस्त तक भूस्खलन का खतरा अधिक रहता है।


शंकर दत्त पांडेय वरिष्ठ पत्रकार हैं और पिछले चार दशक से मीडिया की दुनिया में सक्रिय हैं। Uncut Times के साथ वरिष्ठ सहयोगी के रूप से जुड़े हैं। उत्तराखंड की पत्रकारिता में जीवन का बड़ा हिस्सा बिताया है। कुमाऊं के इतिहास की अच्छी जानकारी रखते हैं। दर्जनों पत्र-पत्रिकाओं में समसामयिक और शोधपरक लेख प्रकाशित। लिखने-पढ़ने और घूमने में रुचि। इनसे SDPandey@uncuttimes.com पर संपर्क कर सकते हैं।
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