रुद्रपुर और काशीपुर में छापे : एनएच घोटाले में ईडी का एक्शन

रुद्रपुर/काशीपुर। राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच) 74 और एनएच-125 के चौड़ीकरण के लिए भूमि अधिग्रहण में हुए कथित घोटाले को लेकर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में बड़ी कार्रवाई की है। गुरुवार को ईडी ने देहरादून, काशीपुर, और रुद्रपुर सहित कई स्थानों पर छापेमारी की। इस कार्रवाई का लक्ष्य प्रांतीय सिविल सेवा (पीसीएस) अधिकारी और उनसे जुड़े लोगों के ठिकाने थे, जिन पर धनशोधन और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं। यह मामला 2017 में उत्तराखंड पुलिस द्वारा दर्ज एक एफआईआर से शुरू हुआ था, जिसके बाद जांच में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए।

इन स्थानों पर हुई छापेमारी

प्रवर्तन निदेशालय ने धनशोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में कम से कम सात ठिकानों पर छापेमारी की। यह कार्रवाई एनएच-74 और एनएच-125 के चौड़ीकरण के लिए भूमि अधिग्रहण में हुए कथित भ्रष्टाचार से जुड़ी है। छापेमारी का केंद्र उन अधिकारियों और व्यक्तियों के ठिकाने थे, जो इस घोटाले में कथित रूप से शामिल थे। वर्तमान में डोईवाला चीनी मिल में कार्यकारी निदेशक के पद पर तैनात एक पीसीएस अधिकारी इस जांच के मुख्य फोकस में हैं। ईडी ने इनके आवास और कार्यालयों सहित कई अन्य संदिग्ध ठिकानों पर तलाशी ली। इससे पहले भी ईडी इस मामले में कई अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई कर चुकी है, जिससे इस घोटाले की गहराई और जटिलता का पता चलता है।

क्या है एनएच-74 घोटाला?

एनएच-74 घोटाला उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय राजमार्गों के चौड़ीकरण के लिए भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में हुई अनियमितताओं से संबंधित है। जांच में सामने आया कि कुछ पीसीएस अधिकारियों, राजस्व अधिकारियों, किसानों, और बिचौलियों ने मिलकर सरकारी धन का दुरुपयोग किया। इस घोटाले का मुख्य आधार उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार अधिनियम, 1950 की धारा 143 के तहत पारित बैकडेटेड आदेश थे।ईडी के अनुसार, जब संबंधित अधिकारी भूमि अधिग्रहण के सक्षम प्राधिकारी के रूप में कार्यरत थे, उन्होंने गैरकानूनी रूप से आदेश पारित कर कृषि भूमि को गैर-कृषि घोषित कर दिया। इस बदलाव के कारण मुआवजे की राशि में भारी वृद्धि हुई, जिससे सरकार को लगभग 162.5 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। गैर-कृषि भूमि के लिए मुआवजा दर कृषि भूमि की तुलना में काफी अधिक थी, जिसका फायदा उठाकर यह घोटाला किया गया।

2017 से चल रही जांच

यह मामला पहली बार 2017 में तब सामने आया, जब उत्तराखंड पुलिस ने इस संबंध में एक एफआईआर दर्ज की थी। पुलिस जांच में पाया गया कि कुछ लोकसेवकों, राजस्व अधिकारियों, और बिचौलियों ने मिलकर एक सुनियोजित साजिश के तहत सरकारी धन का दुरुपयोग किया। इसके बाद चार्जशीट दाखिल की गई, जिसमें कई अधिकारियों और व्यक्तियों के नाम सामने आए। 2020 में ईडी ने इस मामले को धनशोधन निवारण अधिनियम के तहत अपने हाथ में लिया और गहन जांच शुरू की। जांच में यह स्पष्ट हुआ कि बैकडेटेड आदेशों के जरिए भूमि की प्रकृति में बदलाव कर मुआवजा राशि को बढ़ाया गया। 2024 में ईडी ने इस मामले में एक पीसीएस अधिकारी और कुछ अन्य लोगों के खिलाफ आरोपपत्र भी दाखिल किया।

गलत तरीके से मुआवजा राशि बढ़ाई

ईडी के अनुसार, इस घोटाले में शामिल लोगों ने सुनियोजित तरीके से सरकारी नियमों का उल्लंघन किया। अधिकारियों ने न केवल गलत तरीके से मुआवजा राशि बढ़ाई, बल्कि बिचौलियों और कुछ किसानों के साथ मिलकर इस राशि का दुरुपयोग भी किया। यह घोटाला न केवल वित्तीय अनियमितता का मामला है, बल्कि यह सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार और विश्वास के दुरुपयोग को भी दर्शाता है। ईडी की छापेमारी में कई दस्तावेज और सबूत जुटाए गए हैं, जिनका विश्लेषण किया जा रहा है। जांच एजेंसी का कहना है कि इस मामले में और भी बड़े खुलासे हो सकते हैं, क्योंकि घोटाले में शामिल लोगों का नेटवर्क उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश तक फैला हुआ है।

और लोगों पर कसेगा शिकंजा

ईडी की इस ताजा कार्रवाई से यह स्पष्ट है कि जांच एजेंसी इस मामले को पूरी गंभीरता से ले रही है। छापेमारी के दौरान जुटाए गए सबूतों और दस्तावेजों के आधार पर ईडी अगले कदम की योजना बना रही है। संभावना है कि इस मामले में और लोगों के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। साथ ही, जिन अधिकारियों और व्यक्तियों के खिलाफ पहले से आरोपपत्र दाखिल हो चुका है, उनके खिलाफ कानूनी प्रक्रिया को और तेज किया जा सकता है।

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