मिलिए नारायण सिंह जीना से : जापान में 32 रेस्टोरेंट की चेन

मिलिए नारायण सिंह जीना से : जापान में 32 रेस्टोरेंट की चेन

देहरादून/अल्मोड़ा (सुभाष भट्ट) : आज हम आपको मिलवा रहे हैं जापान वाले जीना जी से। उत्तराखंड के एक छोटे से गांव से निकलकर नारायण सिंह जीना ने जापान के नरीता शहर में 32 रेस्टोरेंट की चेन स्थापित कर डाली। उनकी यह यात्रा कड़ी मेहनत, जुनून, और अपनी उत्तराखंडी संस्कृति के प्रति अटूट लगाव की कहानी है। वर्ष 1989 में जापान के नरीता शहर में कदम रखने के बाद उन्होंने “गीतांजलि एंटरप्राइजेज” नाम से 32 रेस्टोरेंट की श्रृंखला स्थापित की, जो भारतीय और उत्तराखंडी व्यंजनों की खुशबू को जापानियों तक पहुंचा रही है।

छोटी शुरुआत से बड़ा मुकाम

नारायण सिंह जीना उत्तराखंड के अल्मोड़ा जनपद के सोमेश्वर क्षेत्र के छोटे से गांव घमंड के रहने वाले हैं। उनके जीवन की शुरुआत सामान्य थी, लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा और कुछ कर गुजरने की चाह ने उन्हें असाधारण बनाया। सपनों को साकार करने की दिशा में पहला कदम नारायण सिंह जीना ने 1982 में उठाया, जब उन्होंने ताज होटल में अप्रेंटिसशिप के रूप में प्रशिक्षण शुरू किया। तीन साल तक ताज होटल में काम करने के दौरान उन्होंने आतिथ्य, रसोई प्रबंधन, और खाद्य संस्कृति की बारीकियों को सीखा। इस अनुभव ने उनके लिए एक मजबूत आधार तैयार किया, जो बाद में उनकी सफलता का कारण बना।

जापान में पहला कदम

1989 में नारायण सिंह जीना जापान के नरीता शहर पहुंचे। वहां उन्होंने एक कंपनी में छह साल तक काम किया, जहां उन्होंने जापानी खानपान और आतिथ्य उद्योग की गहरी समझ विकसित की। इस दौरान उन्होंने भारतीय और जापानी खाद्य संस्कृति के बीच सामंजस्य स्थापित करने की कला सीखी। उनकी मेहनत और समर्पण ने उन्हें जापानी समाज में एक सम्मानजनक स्थान दिलाया।

गीतांजलि एंटरप्राइजेज ने जीता जापान का दिल

1995 में, नारायण सिंह जीना ने अपनी मेहनत और अनुभव के बल पर गीतांजलि एंटरप्राइजेज की नींव रखी। इस रेस्टोरेंट चेन का नाम उनकी बड़ी बेटी गीता के नाम पर रखा गया, जो उनके लिए प्रेरणा का स्रोत रही। आज यह चेन जापान में 32 रेस्टोरेंट्स के साथ भारतीय और उत्तराखंडी व्यंजनों का परचम लहरा रही है।

  • भारतीय और उत्तराखंडी व्यंजनों का अनूठा संगम

  • जापानी स्वाद के साथ मेल खाते देसी फ्लेवर

  • त्योहारों व फूड फेस्टिवल्स के जरिए भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार

  • स्थानीय जापानी नागरिकों में भारतीय खानपान और परंपराओं के प्रति रुचि बढ़ाना

संस्कृति के प्रति निष्ठा और समाज से जुड़ाव

नारायण सिंह जीना की यात्रा बिना चुनौतियों के नहीं थी। नारायण सिंह जीना ने जापान में रहते हुए भी अपनी उत्तराखंडी भाषा, रीति-रिवाज और मूल्यों को संजोकर रखा। उन्होंने उत्तराखंडी प्रवासी समुदाय को जोड़ने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जापान जैसे देश में, जहां सांस्कृतिक अनुशासन और परंपराएं गहरी जड़ें रखती हैं, नारायण सिंह जीना ने अपनी उत्तराखंडी बोली, रीति-रिवाज, और संस्कृति को जीवित रखा।

“दिल से काम करो, सब संभव है”

जापान जैसे प्रतिस्पर्धी और सांस्कृतिक रूप से भिन्न देश में व्यवसाय स्थापित करना आसान नहीं था। भाषा की बाधा, स्थानीय स्वाद के अनुरूप व्यंजन तैयार करना, और जापानी नियमों का पालन करना कुछ प्रमुख चुनौतियां थीं। लेकिन उनकी मेहनत, समर्पण, और भारतीय स्वाद को जापानी संस्कृति के साथ जोड़ने की कला ने उन्हें सफलता दिलाई। नारायण सिंह जीना की जीवनगाथा उन लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा है, जो छोटे कस्बों और गांवों से निकलकर बड़ा सपना देख रहे हैं। नारायण सिंह जीना का मानना है कि अगर कोई भी कार्य सच्चे दिल और लगन से किया जाए, तो सफलता निश्चित है। उन्होंने यह साबित कर दिया है कि सीमित संसाधनों से भी अगर कोई कुछ करने की ठान ले, तो वह दुनियाभर में पहचान बना सकता है।

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