अल्मोड़ा (उत्तराखंड) : जागेश्वर धाम में जटा गंगा नदी के दूषित होने से इसका अस्तित्व खतरे में है। पर्यटन और धार्मिक आस्था का केंद्र मानी जाने वाली इस नदी में होटल, होम स्टे और घरों की निकासी नालियों का गंदा पानी बहकर पहुंच रहा है, जिससे बढ़ता प्रदूषण स्थानीय लोगों और व्यापारियों के लिए चिंता का विषय बन गया है। हालांकि पिछले दिनों “जागेश्वर धाम रिवर फ्रंट डेवलपमेंट परियोजना” को स्वीकृति दी है लेकिन समय बताएगा कि इससे हालात कितना बदलेंगे?
जटा गंगा का महत्व
जागेश्वर धाम, कुमाऊं क्षेत्र में 1870 मीटर की ऊंचाई पर बसा एक प्रमुख तीर्थ स्थल है, जो 124 प्राचीन मंदिरों के लिए जाना जाता है। यह मंदिर समूह 7वीं से 14वीं शताब्दी के बीच कत्यूरी राजवंश द्वारा निर्मित माना जाता है। यहां जागेश्वर मंदिर, मृत्युंजय मंदिर, नवदुर्गा मंदिर, सूर्य मंदिर, और कुबेर मंदिर प्रमुख हैं। यह स्थल शिव पुराण, लिंग पुराण, और स्कंद पुराण में वर्णित है। कुछ मान्यताओं के अनुसार यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक भी माना जाता है। जटा गंगा, जो मंदिर परिसर के पीछे बहती है, इस क्षेत्र की आध्यात्मिक और पर्यावरणीय धरोहर का अभिन्न हिस्सा है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, यह नदी भगवान शिव की जटाओं से निकली है, जिससे इसका नाम जटा गंगा पड़ा।
होटलों और होम स्टे से बढ़ी समस्या
व्यापारियों का कहना है कि जागेश्वर में पर्यटन की बढ़ती लोकप्रियता के कारण होटल और होम स्टे की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है, लेकिन इनमें से अधिकांश के पास सीवर निस्तारण की उचित व्यवस्था नहीं है। स्थानीय घरों से निकलने वाला अपशिष्ट और साबुन-डिटर्जेंट युक्त पानी नदी को दूषित कर रहा है। निकासी नालियों से गंदा पानी सीधे जटा गंगा में मिल रहा है, जिससे न केवल नदी का जल अशुद्ध हो रहा है, बल्कि धार्मिक आस्था भी आहत हो रही है।
सीवर लाइन का निर्माण अभी भी अधर में
जागेश्वर में होम स्टे और होटलों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है, जिससे सीवेज और कचरे की मात्रा बढ़ी है। क्षेत्र में सीवर लाइन या सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) की कोई व्यवस्था नहीं है, जिसके कारण होटलों का गंदा पानी नदी में बह रहा है। हालांकि मुख्यमंत्री की घोषणा में जटा गंगा क्षेत्र के लिए सीवर लाइन निर्माण शामिल है, लेकिन अभी तक न तो निर्माण कार्य शुरू हुआ है और न ही इसके लिए कोई ठोस कार्ययोजना सामने आई है।
स्थानीय लोगों और व्यापारियों का आक्रोश
जटा गंगा के बढ़ते प्रदूषण से स्थानीय लोग और व्यापारी आक्रोशित हैं। व्यापारियों का कहना है कि उन्होंने लगभग एक माह पहले ही प्रशासन को जटा गंगा के प्रदूषण के बारे में जानकारी दी थी, लेकिन अब तक कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की गई है। व्यापार मंडल की ओर से मुकेश भट्ट, महेश गिरि, और मोहन चंद्र भट्ट ने प्रशासन की उदासीनता पर नाराजगी जताई। उनका कहना है कि जटा गंगा जागेश्वर धाम की पहचान है। इसका प्रदूषण धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा रहा है। दूषित नदी पर्यटकों को निराश कर रही है, जिससे स्थानीय व्यापार और आजीविका पर असर पड़ सकता है। प्रदूषित पानी से जलजनित रोग जैसे डायरिया, टाइफाइड, और पीलिया का खतरा बढ़ रहा है। व्यापार मंडल अध्यक्ष मुकेश भट्ट ने कहा, “जागेश्वर में पर्यटकों की बढ़ती संख्या के कारण होटल और होम स्टे बढ़ रहे हैं, लेकिन बिना सीवर लाइन के यह विकास जटा गंगा के लिए अभिशाप बन रहा है।” महेश गिरि ने कहा, “सीवर लाइन का निर्माण मुख्यमंत्री की घोषणा में शामिल है। प्रशासन को इसे प्राथमिकता देनी चाहिए, वरना जटा गंगा का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।”
व्यापारियों की मांगें
- सीवर लाइन निर्माण: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की घोषणा के अनुसार, जागेश्वर में सीवर लाइन का निर्माण तत्काल शुरू किया जाए।
- सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP): क्षेत्र में छोटे पैमाने पर STP स्थापित किए जाएं, ताकि होटलों और घरों का गंदा पानी उपचारित हो।
- नालियों का प्रबंधन: खुली नालियों को बंद कर अंडरग्राउंड ड्रेनेज सिस्टम विकसित किया जाए।
- जागरूकता अभियान: पर्यटकों और स्थानीय लोगों को नदी प्रदूषण के प्रति जागरूक करने के लिए अभियान चलाए जाएं।
- निगरानी समिति: स्थानीय समुदाय और प्रशासन की एक संयुक्त समिति बनाई जाए, जो प्रदूषण नियंत्रण की निगरानी करे।
सामुदायिक भागीदारी जरूरी
जागेश्वर की जटा गंगा का प्रदूषण न केवल एक पर्यावरणीय समस्या है, बल्कि धार्मिक, सांस्कृतिक, और आर्थिक संकट भी है। सीवर लाइन और STP की कमी, खुली नालियां, और प्रशासनिक उदासीनता इस समस्या को गंभीर बना रही है। यदि शीघ्र समाधान नहीं निकाला गया तो न केवल पर्यावरणीय संकट खड़ा होगा, बल्कि जागेश्वर की धार्मिक गरिमा भी प्रभावित होगी। जटा गंगा को निर्मल बनाने के लिए सामुदायिक भागीदारी जरूरी है। जागेश्वर धाम की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर को बचाने के लिए हम सबको मिलकर प्रयास करना होगा।
जागेश्वर धाम रिवर फ्रंट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट से बदलाव की उम्मीद
पिछले दिनों उत्तराखंड सरकार ने “जागेश्वर धाम रिवर फ्रंट डेवलपमेंट परियोजना” को स्वीकृति दी है। इस परियोजना पर कुल ₹2119.27 लाख (लगभग 21 करोड़ रुपये) की लागत आएगी। इस परियोजना के अंतर्गत मंदिर परिसर और जटा गंगा नदी के आसपास सौंदर्यीकरण, पर्यटन सुविधाओं का विकास, और आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किया जाएगा। उम्मीद है इससे जटा गंगा की हालत में सुधार होगा।
जटा गंगा नदी का सौंदर्यीकरण: घाटों का निर्माण, नदी किनारे पाथवे, बैठने की आधुनिक व्यवस्थाएं।
मंदिर परिसर में सुधार: प्रकाश, स्वच्छता, तीर्थयात्रियों के लिए विश्राम स्थल।
पर्यटन सुविधाओं का विस्तार: वाहन पार्किंग, सूचना केंद्र, लोक हस्तशिल्प बाजार।
पर्यावरण संरक्षण: नदी के आसपास हरियाली बढ़ाने, प्रदूषण रोकने के प्रयास।


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