जागेश्वर (अल्मोड़ा), उत्तराखंड– अमूल्य सांस्कृतिक धरोहरों में शामिल *डंडेश्वर मंदिर समूह* पर अब प्राकृतिक संकट के बादल मंडराने लगे हैं। जागेश्वर धाम से डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित इस प्राचीन मंदिर परिसर में एक विशाल देवदार वृक्ष के असामान्य झुकाव ने खतरे की घंटी बजा दी है। मंदिर समूह के ठीक बीचों-बीच यह पेड़ अब निकटवर्ती कई मंदिरों की संरचना को क्षतिग्रस्त कर सकता है, जिससे स्थानीय पुजारियों और श्रद्धालुओं में गहरी चिंता व्याप्त है।
### *धरोहर की जड़ें खतरे में*
डंडेश्वर मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह *भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI)* द्वारा संरक्षित एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल भी है। मान्यता है कि यहीं से *भगवान शिव की लिंग रूप में पूजा की शुरुआत* हुई थी। ऐसे में इस स्थल की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता और भी बढ़ जाती है।
### **स्थानीय पुजारियों की चिंता**
स्थानीय पुजारी उमेद सिंह राणा, चंदन राणा और अन्य धार्मिक सेवकों ने चिंता जताई है कि यदि समय रहते संबंधित विभागों द्वारा उचित कदम नहीं उठाए गए, तो यह प्राचीन मंदिर समूह कभी भी क्षतिग्रस्त हो सकता है। उनका कहना है कि बरसात के मौसम में मिट्टी की नमी और हवा के दबाव के कारण पेड़ कभी भी गिर सकता है, जिससे सैकड़ों वर्ष पुराने मंदिरों की संरचना को अपूरणीय क्षति पहुंच सकती है।
### **एएसआई ने समय रहते भेजा था पत्र**
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संरक्षण सहायक **नीरज मैठानी** ने जानकारी दी कि एएसआई द्वारा पहले ही वन विभाग को पत्र लिखकर डंडेश्वर मंदिर समूह में स्थित झुके हुए देवदार वृक्ष की स्थिति की गंभीरता को लेकर अवगत कराया जा चुका है। पत्र में पेड़ के पातन (गिरने की स्थिति) समेत अन्य आवश्यक उपायों पर त्वरित कार्यवाही की मांग की गई थी, परंतु *अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।*
### **वन विभाग ने दी ढांढस की बात, पर कार्रवाई अधर में**
दूसरी ओर, वन क्षेत्राधिकारी **आशुतोष जोशी** का कहना है कि “डंडेश्वर मंदिर समूह में देवदार वृक्ष का झुकाव जरूर बढ़ा है, लेकिन अभी फिलहाल कोई सीधा खतरा नहीं है। स्थिति पर नजर रखी जा रही है और जल्द ही कोई प्रभावी समाधान किया जाएगा।” हालांकि, अब तक ज़मीनी स्तर पर कोई ठोस कार्रवाई न होने से स्थानीय लोगों में नाराजगी बढ़ रही है।
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#क्या धरोहर की सुरक्षा को लेकर विभाग गंभीर हैं?**
जागेश्वर धाम जैसे धार्मिक-ऐतिहासिक स्थल की सुरक्षा केवल सरकारी कागज़ों में सिमट कर न रह जाए, इसके लिए स्थानीय प्रशासन और विभागों को तत्काल ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। *वन विभाग और एएसआई* के बीच समन्वय की कमी की कीमत कहीं देश को अपनी धरोहरों के नुकसान के रूप में न चुकानी पड़े।


मनीषा हिंदी पत्रकारिेता में 20 वर्षों का गहन अनुभव रखती हैं। हिंदी पत्रकारिेता के विभिन्न संस्थानों के लिए काम करने का अनुभव। खेल, इंटरटेनमेंट और सेलीब्रिटी न्यूज पर गहरी पकड़। Uncut Times के साथ सफर आगे बढ़ा रही हैं। इनसे manisha.media@uncuttimes.com पर संपर्क कर सकते हैं।
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