शरदेंदु सौरभ
भारत में अंग्रेज़ों का आगमन केवल व्यापार तक सीमित नहीं रहा। ईस्ट इंडिया कंपनी ने व्यापार के नाम पर धीरे-धीरे अपने साम्राज्य का विस्तार किया और इसके लिए उन्होंने अपनी संस्कृति, धर्म, भाषा और जीवनशैली को बलवती बनाने का प्रयास किया। इसके बावजूद भारत की आत्मा बनी रही – अपनी भाषा, अपनी परंपरा और अपने संस्कारों के साथ।
विश्व हिंदी सम्मेलन और नरेद्रेव वेदालंकार
जोहान्सबर्ग में आयोजित 9वीं विश्व हिंदी सम्मेलन में हिंदी प्रचार-प्रसार के पितामह पंडित नरदेव वेदालंकार की मूर्ति का अनावरण इस बात का प्रतीक है कि कितने भी अवरोध क्यों न हों, दृढ़ संकल्प और विश्वास से राहें बनती हैं।
हिंदी की सार्वभौमिक मिठास
हिंदी की सबसे बड़ी ताकत उसकी समावेशिता है। यह किसी एक सम्प्रदाय या वर्ग तक सीमित नहीं रही। जब अब्दुर्रहीम खानखाना ने हिंदी में अपने दोहे रचे तो उसमें सूफियाना रंग घुल गया। श्रोताओं ने उसे धर्म से परे, इंसानियत और संवेदनाओं के स्तर पर अपनाया।
देवनागरी की महत्ता
हिंदी भाषा की आत्मा उसकी लिपि देवनागरी में है। इसमें स्वर और व्यंजन का स्पष्ट भेद है, जो रोमन लिपि में नहीं मिलता। संत विनोबा भावे ने इसे ‘विश्वनागरी’ कहा था।
स्वतंत्रता संग्राम में हिंदी
हिंदी स्वतंत्रता संग्राम की भी प्राणवाणी बनी। महात्मा गांधी ने कहा था कि हिंदी ही हिंदुस्तानी भाषा बन सकती है। वर्धा में उन्होंने हिंदी प्रचार समिति की स्थापना की, जिसे 1936 में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति नाम दिया गया।
प्रयाग और हिंदी का संगम
प्रयाग हिंदी साहित्य की भूमि है। यहीं 1911 में महामना मदन मोहन मालवीय और राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन के प्रयास से हिंदी साहित्य सम्मेलन की नींव रखी गई। यही सम्मेलन आगे चलकर पंत, निराला और महादेवी जैसी काव्यधाराओं को पोषण देता रहा।
प्रयाग की धरती पर धर्मवीर भारती, बच्चन, अमरकांत, कैलाश गौतम, उपेंद्रनाथ अश्क और गोपीकृष्ण गोपेश जैसे साहित्यकारों ने हिंदी को नई दिशा दी।
साहित्यकारों के ठिकाने : जिंदा विरासत
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ : दारागंज में उनका निवास, जहां नेहरू और पृथ्वीराज कपूर जैसे लोग मिलने आते थे।
महादेवी वर्मा : अशोकनगर का उनका बड़ा बंगला आज भी न्यास के रूप में साहित्य की स्मृतियां संजोए है।
धर्मवीर भारती : ‘गुनाहों के देवता’ के लेखक दारागंज की संकरी गलियों में रहे।
मदन मोहन मालवीय : भारती भवन के पास चौक क्षेत्र में उनका निवास भारतीय संस्कृति का गढ़ था।
हरिवंश राय बच्चन : राजापुर मोहल्ले और मुट्ठीगंज में उनकी उपस्थिति ‘मधुशाला’ की गूंज आज भी सुनाई देती है।
महावीर प्रसाद द्विवेदी : ‘सरस्वती’ पत्रिका के संपादन से हिंदी को नई दिशा दी।
सुमित्रानंदन पंत : पंत कॉलोनी आज भी उनकी विरासत का स्मारक है।
जगदीश गुप्त : नागवासुकी मंदिर के पास साहित्यिक जमघट का अड्डा।
कैलाश गौतम : प्रीतम नगर का उनका घर आमजन की कविता का गढ़ था।
अमरकांत : अशोकनगर का उनका फ्लैट कभी साहित्यकारों से गुलजार रहता था।
राष्ट्रभाषा से राष्ट्रनिर्माण
चीन, जापान, रूस और फ्रांस की तरह ही भारत की असली ताकत भी उसकी राष्ट्रभाषा में निहित है। हिंदी ने न केवल भारत को जोड़ा बल्कि दुनिया भर में भारतीयता का परिचय दिया।
हिंदी केवल भाषा नहीं, बल्कि हमारी पहचान और जीवन की धड़कन है। हिंदी जिंदगी है, हिंदी जिंदा है, हिंदी भारत की भाषा है। हिंदी मेरी है और हिंदी सबकी है।
(लेखक इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अधिवक्ता और युवा कॉलमिस्ट हैं। )


मनीषा हिंदी पत्रकारिेता में 20 वर्षों का गहन अनुभव रखती हैं। हिंदी पत्रकारिेता के विभिन्न संस्थानों के लिए काम करने का अनुभव। खेल, इंटरटेनमेंट और सेलीब्रिटी न्यूज पर गहरी पकड़। Uncut Times के साथ सफर आगे बढ़ा रही हैं। इनसे manisha.media@uncuttimes.com पर संपर्क कर सकते हैं।
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