हरक रावत VS हरीश रावत : दो दिन पहले दिल्ली में दोस्त, देहरादून आकर ‘दुश्मन’!

हरक रावत VS हरीश रावत : राहुल गांधी की क्लास बेअसर! जुबानी जंग शुरू

देहरादून : उत्तराखंड कांग्रेस में एक बार फिर से दो दिग्गज नेताओं, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और पूर्व मंत्री हरक सिंह रावत के बीच जुबानी जंग छिड़ गई है। यह ताजा विवाद बेहद चौंकाने वाला है, क्याेंकि दो दिन पहले नई दिल्ली में राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे की मौजूदगी में हुई बैठक में दोनों नेता एक-दूसरे के बगल में बैठे नजर आए थे। बैठक से लौटते ही हरक रावत VS हरीश रावत का पुराना राग उभर आया और दोनों ने एक-दूसरे पर जुबानी हमला शुरू कर दिया।

हरक रावत VS हरीश रावत : क्या है पूरा मामला?

पूर्व मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत ने एक वायरल बयान में आरोप लगाया कि यदि 2022 में हरीश रावत चुनाव नहीं लड़ते, तो कांग्रेस सत्ता में होती। उन्होंने कहा, राजनीति में एक ही फंडा होता है—जो जीता, वही सिकंदर। इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी पलटवार करते हुए कहा कि हरक सिंह को एक सीट जीतकर अपनी क्षमता साबित करनी चाहिए, ताकि 2016 की कटुता को भुलाया जा सके। हरीश रावत ने यह भी आरोप लगाया कि 2024 के लोकसभा चुनाव में हरक सिंह कहीं नजर नहीं आए।

राहुल की क्लास, खरगे का पाठ बेअसर!

नई दिल्ली में हुई बैठक में कांग्रेस नेतृत्व ने उत्तराखंड में पार्टी की स्थिति को मजबूत करने और आगामी चुनाव की तैयारियों पर चर्चा की। इस बैठक में हरक सिंह रावत और हरीश रावत एक-दूसरे के बगल में बैठे नगर आए। इस दौरान  राहुल गांधी ने पार्टी नेताओं से एकजुटता दिखाने और गुटबाजी को खत्म करने की अपील की। हालांकि, हरीश रावत और हरक सिंह रावत के बीच ताजा विवाद ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या कांग्रेस उत्तराखंड में अपनी आंतरिक कलह को सुलझा पाएगी। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा ने भी हाल ही में यह संकेत दिया था कि अगर बड़े नेता 2024 के लोकसभा चुनाव में सक्रियता दिखाते, तो परिणाम कुछ और हो सकते थे। यह बयान अप्रत्यक्ष रूप से हरीश रावत और अन्य वरिष्ठ नेताओं की ओर इशारा करता है।

हरक रावत VS हरीश रावत : दो दिन पहले दिल्ली में कांग्रेस की मीटिंग में दोनों नेता अगल-बगल बैठे।
हरक रावत VS हरीश रावत : दिल्ली में दो दिन पूर्व कांग्रेस की मीटिंग में दोनों नेता साथ बैठे।

जो जीता, वही सिकंदर : हरक सिंह रावत

सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक बयान में हरक सिंह रावत ने हरीश रावत पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि अगर 2022 के विधानसभा चुनाव में हरीश रावत ने सक्रियता दिखाई होती और लालकुआं व हरिद्वार ग्रामीण विधानसभा सीटों को छोड़कर अन्य क्षेत्रों में प्रचार किया होता, तो शायद कांग्रेस सत्ता में होती। हरक सिंह ने यह भी खुलासा किया कि उन्होंने हरीश रावत को फोन कर सुझाव दिया था कि व्यक्तिगत मतभेदों को भुलाकर उन उम्मीदवारों को टिकट दिया जाए जो जीतने की क्षमता रखते हों। उन्होंने कहा, “राजनीति में एक ही फंडा होता है—जो जीता, वही सिकंदर।” हरक सिंह ने 2016 की बगावत का जिक्र करते हुए कहा कि उस घटना ने उन सभी को आइना दिखाया जो सत्ता में मदहोश थे। मैं 2022 में अपनी मर्जी से कांग्रेस में नहीं आया। उन्होंने यह भी दावा किया कि हरीश रावत ने उन्हें 2016 की घटना के लिए माफ नहीं किया, और यह उनकी आपसी राजनीतिक लड़ाई का हिस्सा है।

एक सीट जीतकर क्षमता साबित करें : हरीश रावत

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी पलटवार करने में देर नहीं की। उन्होंने कहा कि अगर उन्होंने हरक सिंह को कांग्रेस में वापस न लिया होता, तो वे आज पार्टी का हिस्सा नहीं होते। हरीश रावत ने कहा, “मैंने उनके आग्रह का सम्मान किया और उन्हें पार्टी में शामिल किया। हरक सिंह को एक सीट जीतकर अपनी क्षमता साबित करनी चाहिए, ताकि 2016 की कटुता को भुलाया जा सके।” हरीश रावत ने यह भी आरोप लगाया कि 2024 के लोकसभा चुनाव में हरक सिंह कहीं नजर नहीं आए। उन्होंने कहा कि 2016 में लोकतंत्र और उत्तराखंडियत की हत्या हुई। इसके घाव मेरे सीने में हैं। मेरी न्याय यात्रा भाजपा के झूठ और लूट के खिलाफ है। 2016 की घटना ने ही भाजपा को 2017 और 2022 में सत्ता हासिल करने का मौका दिया।

कांग्रेस में गुटबाजी पुरानी समस्या

उत्तराखंड कांग्रेस में गुटबाजी कोई नई बात नहीं है। हरीश रावत, हरक सिंह रावत, यशपाल आर्य, और प्रीतम सिंह जैसे नेताओं के बीच आपसी मतभेद समय-समय पर सामने आते रहे हैं। 2016 की बगावत के बाद से हरीश रावत को पार्टी में कई नेताओं की ओर से चुनौतियां मिलती रही हैं। मीडिया में आई चर्चाओं के अनुसार, हाल ही में यशपाल आर्य के घर पर हुई एक गुप्त बैठक में भी हरीश रावत और हरक सिंह रावत के बीच तीखी बहस हुई थी, जिसमें निकाय चुनावों के टिकट वितरण को लेकर मतभेद सामने आए थे। हरक सिंह ने हरीश रावत की कार्यशैली पर सवाल उठाए और कहा कि उनके निर्णय पार्टी के सामूहिक हितों के बजाय व्यक्तिगत लाभ के लिए होते हैं।

2016 की बगावत : क्या हुआ था?

2016 में हरीश रावत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को उस समय बड़ा झटका लगा था, जब हरक सिंह रावत, विजय बहुगुणा, और सात अन्य विधायकों ने बगावत कर भाजपा में शामिल होने का फैसला किया था। इस बगावत के कारण हरीश रावत की सरकार अल्पमत में आ गई थी, हालांकि विधानसभा अध्यक्ष की शक्तियों के उपयोग से सरकार बच गई थी। इस घटना ने कांग्रेस को लंबे समय तक नुकसान पहुंचाया और 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता में आने का मौका मिला। हरक सिंह रावत ने 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले फिर से कांग्रेस में वापसी की, लेकिन हरीश रावत और उनके बीच पुरानी कटुता अब भी बरकरार है।

चुनाव से पहले तकरार क्या गुल खिलाएगी?

उत्तराखंड में निकाय चुनाव सामने हैं और कांग्रेस की पुरानी रार एक बार फिर सतह पर आ गई है। 2016 की घटनाएं हों या 2022 की रणनीतिक चूक, हरक और हरीश के बीच विश्वास की दीवार कमजोर दिखती है। राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे की बैठक के बावजूद, अगर कांग्रेस अपनी गुटबाजी को नियंत्रित नहीं कर पाई, तो 2027 के विधानसभा चुनाव में उसे बड़ा नुकसान हो सकता है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, इस जुबानी जंग ने फिर यह साबित कर दिया है कि उत्तराखंड कांग्रेस में भीतरघात और अंतर्कलह अभी भी खत्म नहीं हुई है। जहां राहुल गांधी और कांग्रेस आलाकमान संगठन में एकजुटता की कोशिश कर रहे हैं, वहीं जमीनी स्तर पर दो वरिष्ठ नेताओं की यह तकरार पार्टी के लिए आगामी निकाय और विधानसभा चुनावों में नुकसानदेह साबित हो सकती है। अब देखना होगा कि कांग्रेस आलाकमान इन दोनों नेताओं के बीच इस कड़वाहट को कैसे दूर करता है, क्योंकि एकजुटता के बिना पार्टी की वापसी बेहद मुश्किल हो सकती है।

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