राज्यपाल ने भारत की सामरिक दृष्टि में उत्तराखंड : विकास और सुरक्षा के मार्ग विशेष पर अपने विचार रखे। कहा कि उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्य की भौगोलिक स्थिति देश की सुरक्षा, पर्यावरण संरक्षण और जल स्रोतों के संरक्षण में अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि विकास और सुरक्षा को अलग-अलग नहीं देखा जा सकता।

जब सीमांत क्षेत्र सशक्त और आत्मनिर्भर होंगे, तभी सीमाएं सुरक्षित होंगी। राज्यपाल ने भारत-चीन-नेपाल सीमा से लगे 30 से अधिक गांवों के अपने दौरों का अनुभव साझा करते हुए कहा कि सीमांत क्षेत्रों के निवासियों की सोच और आत्मविश्वास में उल्लेखनीय बदलाव आया है।

उन्होंने कहा कि स्थानीय उद्यमिता, होम-स्टे, हस्तशिल्प, जैविक खेती और महिला स्वयं-सहायता समूहों की गतिविधियां सीमांत समाज को नई ऊर्जा दे रही हैं। इन पहल से न केवल पलायन में कमी आई है, बल्कि सीमांत गांवों का रिवर्स पलायन भी हो रहा है।

राज्यपाल ने कहा कि उत्तराखंड जैसे संवेदनशील राज्य में विकास योजनाएं तैयार करते समय भूगोल, जलवायु और स्थानीय संस्कृति को ध्यान में रखना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि हमें भारतीय संदर्भ के अनुरूप समाधान विकसित करने होंगे जो हिमालयी परिस्थितियों के अनुकूल हो। उन्होंने कहा कि सशस्त्र बलों, शिक्षण संस्थानों, अनुसंधान केंद्रों और नागरिक प्रशासन के बीच साझेदारी और समन्वय को बढ़ाना चाहिए।